
हिन्दू धर्म में भगवान गणेश का विशेष स्थान है। गणेश जी को प्रथम पूज्य माना जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की चतुर्थी से अनंत चौदस तक गणपति की आराधना विशेष रूप से की जाती है। ऐसे में आज चतुर्थी से पूरे देश में गणपति उत्सव की शुरुआत हो गई है। इस अवसर पर हम आपको बुंदेलखंड क्षेत्र के सागर जिले में विराजमान एक अद्भुत गणेश प्रतिमा के दर्शन कराएंगे और मंदिर की विशेषता भी बताएंगे।
सागर जिले में भगवान गणेश के कई प्राचीन मंदिर और प्रतिमाएं हैं। लेकिन, पुरातत्विक महत्व की इन प्रतिमाओं का प्रचार-प्रसार कम होने के कारण लोगों को इनके बारे में जानकारी नहीं है। ऐसी ही एक दुर्लभ प्रतिमा सागर जिले के जरुआखेड़ा कस्बे के जलंधर गांव में स्थित है। यह प्रतिमा ऊंची पहाड़ी पर बने मां ज्वाला देवी के प्रसिद्ध मंदिर में स्थापित है। गणेश भगवान की यह प्रतिमा अति प्राचीन है, जिनकी जांघ पर शक्ति स्वरूप में विनायकी विराजमान हैं।
सिद्ध गणेश की प्रतिमा
मंदिर के पुजारी के अनुसार भगवान गणेश की यह प्रतिमा बहुत ही प्राचीन है। इस प्रतिमा की सूंड दाहिनी ओर की है जो बहुत कम प्रतिमाओं में मिलती है। इस प्रतिमा के 12 नाम हैं और बारह स्वरूप इसके साथ हैं। यह सिद्ध गणेश की प्रतिमा है, जिनका नाम लेने से सभी काम सिद्ध होते हैं। इस प्रतिमा के एक हाथ में फरसा और दूसरे हाथ में मूसल है, जिससे भगवान ने राक्षसों का संहार किया था। भगवान सर्प का यज्ञोपवीत धारण किए हुए हैं।
ये प्रतिमाएं प्रतिहार काल की
इतिहासकार और पुरातत्वविद इस प्रतिमा को विनायक और विनायकी की प्रतिमा मानते हैं, क्योंकि गणपति की जांघ पर शक्ति स्वरूप विनायकी विराजित हैं। सागर जिले में गणपति की इसी तरह की अन्य प्रतिमाएं भी विभिन्न स्थलों पर प्राप्त हुई हैं, जिनमें से एक राज्य पुरातत्व संग्रहालय सागर में संरक्षित है। इतिहास के जानकारों के अनुसार ये प्रतिमाएं प्रतिहार काल की शिल्प कला का प्रतिनिधित्व करती हैं, जो लगभग 10वीं शताब्दी की हो सकती हैं। सागर जिले में चंदेल, परमार, गुप्त और कलचुरी राजवंशों के समय के अलावा प्रतिहार काल की प्रतिमाएं और मंदिर मिले हैं, जिससे यह सिद्ध होता है कि यह इलाका कभी प्रतिहारों के साम्राज्य का भी भाग रहा है।
इस तरह पहुंच सकते हैं मंदिर
मां ज्वाला देवी के मंदिर पर पहुंचने के लिए सबसे पहले आपको जरुआखेड़ा रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर पहुंचना होगा। इसके बाद, चांदामऊ और लुहर्रा से होते हुए 10 किलोमीटर की यात्रा करके मां ज्वाला देवी के धाम जलंधर पहुंचा जा सकता है।