
इन दिनों पूरे देश में गणपति उत्सव की धूम मची हुई है। लोग विघ्नहर्ता की दस दिवसीय आराधना में लीन हैं। ऐसे में हम आपको मध्यप्रदेश के सागर जिले की एक प्राचीन गणेश प्रतिमा के दर्शन करवा रहे हैं, जो अपने पिता भगवान शंकर के साथ एक स्थान पर विराजमान हैं, या कहें कि श्रीगणेश भगवान शंकर की आराधना कर रहे हैं।
कहां है यह प्रतिमा?
सागर जिले के राहतगढ़ नगर के पास सागर-भोपाल सड़क मार्ग पर राहतगढ़ वाटरफॉल के पास जंगलों में बनी एक छोटी सी मढिया में यह प्रतिमा स्थापित है। इन अत्यंत मनोहारी प्रतिमा के दर्शन करने के लिए भक्तों की भीड़ लगती है।
क्या है प्रतिमा की विशेषता?
लगभग छह फिट की यह प्रतिमा चतुर्भुज गणेश की स्थानक मुद्रा में है। उनके ऊपरी दाएं हाथ में दंत और निचले हाथ में गदा है। ऊपरी बाएं हाथ में अस्पष्ट आयुध, संभवतः पाश और निचले हाथ में मोदक भरा है। वे मुकुट और नागहार पहने हुए हैं। दूसरी कलाकृति सर्वतोभद्र शिवलिंग है। शिवलिंग के अधिष्ठान के तीन ओर स्थानक शिव अंकित हैं, जबकि एक ओर का भाग नष्ट हो चुका है। शिवलिंग और अधिष्ठान से संलग्न भाग अष्ठकोण है, जिस पर ज्योतिशिखा अंकित है। शिवलिंग के नव्या भाग पर पुष्पीय अलंकरण युक्त दो पट्टियां और ऊपर सर्प का फन है। आकार 107 x 32 सेमी और काल 13वीं शती ईस्वी है। इसमें क्रमशः चतुर्भुजी सरस्वती, शिव ललितासन में, गजासुर संहारक शिव, और खंडित मूर्ति (शिव) की प्रतिमाएं अंकित हैं। एक अन्य प्रस्तर खंड पर अश्वारूढ़ योद्धा और शिवलिंग पूजा का दृश्य है। ये सभी प्रतिमाएं लगभग 13वीं सदी की हैं। इस स्थान पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर एक मेला लगता है।