
टीकमगढ़ – कहते हैं मानवीय रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं होता है। इसी को चरितार्थ किया है टीकमगढ़ जिले की ग्राम पंचायत केशवगढ़ की सरपंच शशि जैन ने। ग्राम पंचायत के रहने वाले बुजुर्ग आदिवासी गूंदा आदिवासी का कच्चा मकान बीती रात्रि तेज बारिश के चलते ढह गया था। सुबह जैसे ही इसकी खबर गांव की सरपंच शशि जैन को लगी तो उन्होंने मौके पर पहुंच कर मुआयना किया। लेकिन अब उसके आदिवासी के पास सिर ढकने के लिए कोई साधन नहीं था। ऐसे में उन्हें उन्होंने मानवीय रिश्तो को प्राथमिकता देते हुए ग्राम पंचायत के बने सामुदायिक भवन की चाबी दी। इसके साथ ही उन्हें घर से भोजन लेकर पहुंची और भोजन कराया, क्योंकि वह निराश्रित है और उनका कोई सहारा नहीं है।
मध्यप्रदेश सरकार भले ही कितने दावे कर ले कि उन्होंने गरीब परिवारों को सिर ढकने के लिए पक्की छत दी है। लेकिन बुंदेलखंड की हकीकत दूर है, बात अनुकूलित कमरों से बनकर निकली विकास योजनाओं का हश्र बुंदेलखंड में किस तरह हो सकता है, इसका यह जीता जागता प्रमाण है। भले ही अधिकारी इसको स्वीकार करें या नकार दें, लेकिन यह वह हकीकत है, जिसे स्वीकार करना होगा। यहां पर अधिकारियों द्वारा बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं और कमरों में बैठकर बनाई गई योजनाएं उनकी घोड़े की तरह दौड़ती है। लेकिन हकीकत कुछ और है।
इस आदिवासी परिवार ने भी कई बार आवेदन किया, लेकिन कहते हैं न कि सत्ता में बैठे दलालों को जब तक हरे नोटों की गड्डियां नसीब नहीं होती है तो गरीब क्या होता है, उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता है और इसी का प्रमाण है यह आदिवासी। मध्यप्रदेश और भारत सरकार द्वारा आदिवासियों के उत्थान के लिए 44 योजनाएं संचालित की जा रही हैं, जिसमें जन्म से लेकर मृत्यु तक की गारंटी दी गई है। लेकिन कितनी गारंटी है कि एक आदिवासी परिवार को अपना तन ढकने और सिर ढकने के लिए मकान नहीं है। यह एक बानगी है उस बुंदेलखंड की जहां की बेटी मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।
सरपंच शशि जैन ने कहा कि मेरी पहली प्राथमिकता आदिवासी को प्रधानमंत्री आवास दिलाने की उन्होंने कहा कि मैं जाकर खुद आवेदन करूंगी और जो भी मदद होगी उसकी मदद करूंगी। उन्होंने कहा कि मेरे क्षेत्र में कई ऐसे आदिवासी परिवार हैं, जिन्हें पिछले पंचवर्षीय में प्रधानमंत्री आवास नहीं दिया गया है, जिसके चलते गरीब और गरीब होता जा रहा है। आदिवासियों की स्थिति दयनीय है।