
मध्यप्रदेश में लंबे अरसे तक सत्ता के केंद्र में रहने वाला बुंदेलखंड इन दिनो चर्चाओं में है वजह पुरानी है लेकिन किरदार बदल गये है । मध्यप्रदेश में दो दशकों तक भाजपा की उमा भारती और शिवराज सिंह चौहान की सरकार में प्रमुख चेहरे रहे गोपाल भार्गव और भूपेंद्र सिंह मोहन यादव सरकार में पिछले दस महीनों से उपेक्षित हैं जो जन चर्चा का विषय बना हुआ है हालांकि मुख्यमंत्री मोहन यादव ने सदैव मंच से दोनो वरिष्ठ नेताओं को तवज्जो दी है लेकिन वर्तमान में अच्छे दिनों की पतवार थामें नेता उन्हें अतीत मान चुकें है । सरकार बनने के बाद पिछले 9 माह में ऐसे कई मौके आये है जब आम जनता को भी यह बात खटकी है पर बात आई गई हो गयी लेकिन सागर में बीते 27 सितंबर को हुए रीजनल बिजनेस कॉन्क्लेव के भव्य समारोह में दोनों दिग्गजों के सब्र का बांध टूट गया । दरअसल पूरे बुंदेलखंड में निवेश को लेकर होने वाले इस समारोह में न तो इन दोनो पूर्व मंत्रियों को किसी भी प्रकार की जिम्मेवारी दी गई और न ही इनके अनुभवों के आधार पर किसी भी प्रकार का सलाह मशविरा किया गया और जब समारोह में मंच की बैठक व्यवस्था तय की गई तो दोनो पूर्व मंत्रियों को मंच के आखिरी छोर की कुर्सियां थमा दी गई जिससे उनकी असहजता मंच पर ही स्पष्ट दिखाई दी और मंत्री गोपाल भार्गव बीच कार्यक्रम में ही आयोजन स्थल से बाहर निकल आये बाद में उनकी एक सोशल मीडिया पोस्ट में भावनात्मक रूप से अपने राजनैतिक जीवन के संघर्ष और बुलंदियों के बदले जो खोया है और जिसे वापिस भी नहीं लाया जा सकता उसका दर्द बयान किया तो राजनीति के चमकदार दिखने वाले सिक्के के दूसरे पहलू को उजागर किया । तो दूसरे ही दिन एक दैनिक अखबार में मंच पर बैठने की कोशिश जुगाड़ करने की खबर पूर्व मंत्री और शिवराज सिंह चौहान की सरकार में लगातार नंबर दो रहे भूपेंद्र सिंह को चुभ गई और उन्होने भी सोशल मीडिया पर एक पोस्ट के हवाले से अपनी व्यथा बताते हुए शब्दों का जो ताना बाना बुना उससे भाजपा के पाषाण युग से लेकर र्स्वणिम युग तक की तस्वीर सामने आई । भूपेंद्र सिंह ने भाजपा और संघ की विचारधारा पर डटे रहने की कीमत बताते हुए संघर्ष का लंबा इतिहास दिखा दिया और लिखा कि “कुर्सियों का मोह हमने तब नहीं किया तो अब कुर्सियों के लिये मोह और समझौते का क्या करेंगें !” राजनैतिक दल कोई भी हो नेताओं के रूठने मनाने का इतिहास हर पार्टी में रहा है भाजपा भी इससे अछूती नहीं रही, लेकिन संघर्ष काल में लंबे अरसे तक जिन नेताओं का विरोध किया हो दल बदल के दौर में उनके सामने कमतर दिखना शायद इस दर्द को बढा देता है । मध्यप्रदेश में 2018 के चुनाव में कांटे की टक्कर में शिवराज सरकार की वापसी में जो 7 सीटों की चूक हो गई थी उसने प्रदेश की राजनीति को हमेशा के लिये बदल दिया इसी बदली हुई सियासत के समीकरण सागर में चल रहें है और बुंदेलखंड के एकमात्र कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह राजपूत आज सबसे कट्टर भाजपाई और सत्ता के केंद्र में है, मंत्रिमंडल गठन के बाद से ही जिले की राजनीति में कई मौकों पर गुटबाजी सामने आ चुकी है लेकिन इस बार इन दिग्गजों के सब्र ने नकाब हटाकर आईना दिखाने का काम किया है।
खैर नई भाजपा में शायद नाराजगी और असहजता के लिये कोई स्थान नहीं है पिछले एक दशक से कई कटटर और दिग्गज असहजता की माला गले में डाले घूम रहें है क्योकि भाजपा में जो नया सिस्टम तैयार हुआ है वह विचारधारा या संगठन का नहीं है, आरएसएस का भी नहीं है , सिस्टम है 4 k का मोदी जी की भाषा में समझा जाये तो 4 k का मतलब है कौन- किसके – कितने – करीब है और यह चैन दिल्ली से लेकर भोपाल और जिला स्तर तक बनीं हुई है अधिकारी कर्मचारियों से लेकर आम जनता तक एक पल में समझ जाती है कि किसके हाथ में कितनी ताकत है किसके गॉडफादर राजदरबार में है और किसके वनवास पर लेकिन हां अच्छे दिनों का इंतजार सभी को है।