
केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि संवैधानिक वैधता के आधार पर आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को खत्म करने से विवाह संस्था पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि इससे वैवाहिक संबंधों पर गंभीर असर पड़ सकता है और विवाह संस्था में गंभीर व्यवधान पैदा हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में ‘वैवाहिक बलात्कार’ पर हलफनामा दायर
केंद्र ने कहा- यह मुद्दा कानूनी से अधिक सामाजिक

दांपत्य संबंधों पर गहरा असर
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि देश में वैवाहिक दुष्कर्म को ‘अपराधीकरण’ करार नहीं दिया जा सकता। केंद्र का कहना है कि अगर एक पुरुष के अपनी पत्नी से यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म करार दिया गया तो इससे दांपत्य संबंधों पर गहरा असर होगा। इससे विवाह संस्था में गंभीर किस्म की उथल-पुथल मच जाएगी।
विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई
केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में गुरुवार को वैवाहिक दुष्कर्म (मेरिटल रेप) का अपराधीकरण किए जाने का कड़ा विरोध किया। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में वैधानिक मुद्दा उठाया गया है कि क्या किसी पति को अपनी ‘बालिग’ पत्नी की इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध स्थापित करने को अपराध-मुक्त माना जाना चाहिए?
पत्नी से यौन संबंध अपराध नहीं
उन्होंने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) की धारा 375 के तहत अपवाद स्वरूप दिए गए क्लाज को हटाया गया है और उसके स्थान पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत एक पति के अपनी गैर-नाबालिग पत्नी से यौन संबंध स्थापित करने में कोई अपराध नहीं है। यहां तक के नए कानून की धारा 63 (दुष्कर्म) के तहत यही बात कही गई है।
सभी याचिकाएं सीज
हलफनामे में केंद्र का कहना है कि इस याचिका के नतीजे का हमारे समाज पर बहुत गहरा असर पड़ेगा। खासकर भारत में विवाह की अवधारणा प्रभावित होगी जिससे दोनों ही व्यक्तियों के लिए समाज और कानूनी अधिकारों का आधार तय होता है और परिवार के अन्य सदस्यों पर भी इसका सीधा असर होता है।
इसलिए इस मामले पर समग्रता से विचार होना चाहिए नाकि केवल कानूनी रुख अपनाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डीवाइ चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मुद्दे पर सभी याचिकाओं को सीज कर दिया है।