
Damoh: होली का त्यौहार पूरे देश में मनाया जाता है और इस पर्व को रंगों का त्यौहार कहा जाता है। इस दिन पुराने बैर भुलाने की भी परंपरा है। जिसमें लोग एक दूसरे को गुलाल लगाकर बैर खत्म करने की शुरुआत करते हैं, लेकिन बुंदेलखंड के दमोह जिले में दो लोगों के बीच चल रहे बैर को खत्म करने की एक विशेष परंपरा है।
होली पर्व पर शक्कर की चासनी से बनी मीठी माला का निर्माण किया जाता है। जिसे दो लोगों के बीच चलने वाले सदियों के बैर को खत्म करने के लिए जाना जाता है। जिसमें एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को यह शक्कर से बनी मीठी माला पहनाता है और इसकी मिठास के साथ ही पुराने बैर खत्म हो जाते हैं।
इस माला का निर्माण करने वाले स्टेशन चौराहा निवासी 72 वर्षीय रमेश नेमा ने बताया कि शक्कर की चाशनी से बनी मीठी माला दो लोगों के बीच चले आ रहे वर्षों पुराने बैर को खत्म कर देती है। उन्होंने बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम है उनके पिता से उन्होंने इस परंपरा को सीखा था, जिसे वह आज भी जीवित रखे हुए हैं। उनके इस काम में उनकी पत्नी गीता नेमा सहयोग करती हैं। दमोह जिले में उनके अलावा और कहीं इसका निर्माण नहीं होता।
नेमा बीएससी, एमए और एलएलबी हैं, लेकिन उन्होंने नौकरी ना कर अपने बुजुर्गों की परंपरा को बनाए रखने की खातिर इस कारोबार को चालू रखा। उनके दो बेटे हैं, जो प्रदेश के बाहर है। एक नौकरी में दूसरा व्यवसाय में हैं। बेटों ने कभी इस काम को नहीं किया इसलिए उनके बाद इस शक्कर की माला को बनाने वाला कोई नहीं रहेगा।
ऐसे बनती है मीठी माला
रमेश नेमा ने बताया कि उनकी यह तीसरी पीढ़ी चल रही है, जो इस मीठी माला को बना रही है। उन्होंने बताया कि शक्कर की चाशनी को धागे के साथ सांचे में भरकर सूखने रख दिया जाता है और जब चाशनी सूख जाती है तो इन सांचों को खोल दिया जाता है, जिसके अंदर से शक्कर की माला बनकर बाहर आ जाती है। नेमा ने बताया कि उनकी बनी यह माला समूचे बुंदेलखंड में विक्रय के लिए जाती है। इसके साथ ही तेंदूखेड़ा के लोग यह मीठी माला ले जाते है और जबलपुर में जाकर बेचते हैं।