
MP News: करीब तीन दशक तक अपनी भव्यता और सौहार्द भरे माहौल के लिए देशभर में प्रसिद्धि पर रहा मप्र सीएम हाउस का रोजा इफ्तार इस बार भी साकार रूप नहीं ले पाएगा। वर्ष 2019 में कांग्रेस की कमलनाथ सरकार से लगी इस आयोजन पर रोक का असर वर्तमान की मोहन सरकार तक दिखाई दे रहा है। हालांकि इस बार आयोजन निरस्त होने की वजह आचार संहिता का पालन बताया जा रहा है, जबकि पिछले साल भाजपा की शिवराज सरकार ने सारे हालात सामान्य होने के बावजूद इससे गुरेज किया था।
मध्य प्रदेश सीएम हाउस के निर्माण के जमाने से ही यहां रोजा इफ्तार पार्टी की परंपरा शुरू हुई थी। दिल्ली और उप्र में बड़ी रोजा इफ्तार दावतों की तर्ज पर मप्र में भी इस तरह के आयोजन की शुरुआत हुई। पूर्व मुख्यमंत्री स्व अर्जुन सिंह के दौर से लेकर पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह के कार्यकाल तक भी ये सिलसिला जारी रहा। इस समय तक ये आयोजन भोपाल और आसपास के जिलों तक सीमित था। राजनीतिक दलों के लोगों से लेकर शहर के कारोबारी और वरिष्ठों के अलावा मुस्लिम समुदाय के धर्मगुरुओं को इसमें शामिल किया जाता था।
शिवराज ने किया प्रदेश स्तरीय
वर्ष 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आयोजन को विस्तार दिया। तत्कालीन राज्य अल्पसंख्यक आयोग अध्यक्ष मरहूम अनवर मोहम्मद खान की जुगलबंदी से शिवराज ने प्रदेश भर के उलेमाओं को इसमें शामिल करना शुरू किया। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने भी इसमें सहयोग किया और तत्कालीन अध्यक्ष डॉ सनव्वर पटेल ने इसमें प्रदेश भर की टीम को इस आयोजन से जोड़ा। वर्ष 2018 तक निरंतर चले इस सिलसिले का क्रेज यहां तक पहुंचा कि लोग इस आयोजन के लिए सारा साल इंतजार करते दिखाई देने लगे। आयोजन में शिरकत करने के लिए तरह तरह के सोर्स लगाना और आमंत्रण पत्र हासिल करने के लिए मिन्नतें और मशक्कतें करने के हालात भी बनते देखे गए।
नाथ आए, लगा ब्रेक
वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत दर्ज कर कमलनाथ के मुख्य मंत्रित्व में सरकार बनाई। इसके बाद पहला रमजान वर्ष 2019 में आया। सॉफ्ट हिंदुत्व की तरफ बढ़ चुके कमलनाथ ने इस आयोजन से दूरी बना ली। बरसों की सीएम हाउस रोजा इफ्तार दावत का सिलसिला थमा तो फिर थमा ही रह गया। अगले दो वर्ष कोरोना की सावधानियों के चलते ये आयोजन नहीं हुआ। जबकि वर्ष 2023 में हालात सामान्य होने के बावजूद भी तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आयोजन से दूरी बनाए रखी। वजह उनकी सरकार पर केंद्रीय नेतृत्व की पाबंदियां और मुस्लिम समुदाय की करीबी से परपंरागत हिंदू वोटों के नुकसान का आंकलन के रूप में सामने आया।
अब मोहन यादव भी लाचार
इस रमजान प्रदेश सरकार की बागडोर डॉ मोहन यादव के हाथों है। उज्जैन की जिस विधानसभा से वे ताल्लुक रखते हैं, उसमें मुस्लिम समुदाय की बहुलता है। साथ ही उनके राजनीतिक सफर में भी मुस्लिम साथियों को बड़ी तादाद बताई जाती है। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि चार साल से रुका हुआ सीएम हाउस इफ्तार दावत का सिलसिला इस बार पुनः गति पकड़ेगा, लेकिन लोकसभा चुनाव की आचार संहिता ने इस आयोजन के पैरों में बेड़ियां डाल दी हैं।
मोर्चा भुना सकता था मौका
माह-ए-रमजान में हर दिन होने वाली रोजा इफ्तार पार्टियों को भाजपा का अल्पसंख्यक मोर्चा बेहतर तरीके से भुना सकता था। शहर भोपाल और प्रदेश की हर मुस्लिम बहुल लोकसभा में इफ्तार पार्टी के आयोजन से लोगों को जोड़ा जा सकता था। आचार संहिता को बंदिशों के इतर अप्रत्यक्ष रूप से इस तरह के आयोजन पार्टी के लिए चुनावी फायदे मुहैया कर सकती थी। लेकिन निष्क्रिय पड़े प्रदेश भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा ने प्रदेश में ऐसे किसी आयोजन की रूपरेखा नहीं बनाई।