
अनूपपुर जिले में आदिवासी समाज की अनोखी परंपरा देखने को मिल रही है। जहां अच्छी बारिश की कामना को लेकर आदिवासी समाज के द्वारा इंद्रदेव की आराधना की जाती है, जिसे स्थानीय भाषा में बेदरी इंद्र कहा जाता है।
अनूपपुर जिले में आदिवासी समुदाय के द्वारा इस वर्ष अच्छे मानसून तथा बारिश की कामना को लेकर बेदरी इंद्र की आराधना की गई। आदिवासी समुदाय का मानना है कि इससे आगामी वर्षा ऋतु में अच्छी बारिश होगी और बारिश अच्छी होने से खेती भी अच्छी होगी। प्रति वर्ष की ग्रीष्म ऋतु में आदिवासी समुदाय के द्वारा यह पूजा की जाती है।
बेदरी इंद्र की पूजा शुक्रवार को अनूपपुर जनपद अंतर्गत ग्राम पंचायत दैखल में खेरवा में की गई। जहां सबसे पहले खेरवाहिन देवी, बड़ा देव और धरती मां की पूजा की गई। जिन्हें ग्रामीणों के द्वारा अपने घरों से अन्न लाकर के देवताओं को अर्पित किया गया। इसके साथ ही बेदरी इंद्र की पूजा करते हुए इंद्रदेव से आगामी बारिश के मौसम में अच्छे मानसून की कामना की गई।
एक दिन पहले गांव में कराई जाती है मुनादी
70 वर्षीय स्थानीय ग्रामीण चैतु चौधरी ने बताया कि यह पूजा प्रतिवर्ष की जाती है, जिसे वह बचपन से देखते आ रहे हैं। नौतपा के समय यह पूजा की जाती है, जिसमें एक दिन पहले पूरे गांव में मुनादी कराई जाती है तथा ग्रामीणों को इसकी सूचना दी जाती है। इसके अंतर्गत ग्रामीण पूजा की सारी तैयारी एक दिन पहले ही कर लेते हैं। इसके साथ ही एक दिन पहले ही घर के उपयोग के लिए पानी भर लिया जाता है। क्योंकि पूजा वाले दिन जब तक पूजा न हो जाए। कुएं, हैंडपंप या अन्य किसी जल स्रोत का उपयोग पूरी तरह से वर्जित रहता है।
गांव की रक्षा तथा खुशहाली के लिए करते हैं प्रार्थना
65 वर्षीय स्थानीय ग्रामीण राजू सिंह ने बताया कि बेदरीइंद्र की पूजा के दौरान सभी ग्रामीण एकजुट होकर पूजा अर्चना करते हुए गांव की रक्षा तथा खुशहाली की कामना करते हैं। इसमें पूजन करते हुए अच्छी बारिश की कामना की जाती है। पूर्व के वर्षों में किसान कृषि कार्य पर ही मुख्य रूप से आश्रित थे, जिसके कारण अच्छे मानसून तथा अच्छी वर्षा के लिए वह ईश्वर से प्रार्थना करते थे, जिससे अच्छी बारिश से पर्याप्त अनाज प्राप्त हो सके तथा गांव में भुखमरी तथा गरीबी का सामना लोगों को न करना पड़े।
उपवास रहकर करते हैं पूजा
ग्राम पंचायत दैखल के पंच भंवर सिंह ने बताया कि पूजा से पहले सभी ग्रामीण उपवास रखते हैं और खेरवा में अपने घर से लाए हुए अनाज के साथ एकत्रित होते हैं। इसके पश्चात सभी एक साथ बेदरी इंद्र की पूजा करते हैं। इसके पश्चात पूजा स्थल पर ही बकरे की बलि दी जाती है। इसके पश्चात सभी एक साथ बैठ करके प्रसाद ग्रहण करते हैं।