
दमोह जिले में 150 साल पुराना बरगद आज बीस परिवारों की आजीविका का साधन बना हुआ है। छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम जाने और आने के दौरान राह से गुजरने वाले लोगों का यह स्टॉप है। शाम को यहां का नजारा देखते ही बनता है।
दमोह के हटा तहसील के हारट गांव में 150 साल पुराना बरगद का पेड़ लगा है। इसके नीचे 20 परिवारों का भरण पोषण होता है। इसकी डालियां 40 फीट तक पूरी सड़क को ढंके हुए हैं। इससे छतरपुर मार्ग से आने वाले सैकड़ों लोग इसी पेड़ की छांव में रुककर परिवार के साथ आराम करते हैं। यहां लगी फलों की दुकानों से खरीदी भी करते हैं।
दमोह जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर हटा के आगे सुनार नदी पर बने हारट पुल के पास में यह बरगद का पेड़ लगा है। इसकी 40 फीट दूर तक फैली शाखाएं इस पुल के आधे हिस्से को ढंके हुए हैं। भीषण गर्मी में इस पेड़ के नीचे 20 दुकानों का संचालन हो रहा है, जो लोगों की आय का स्रोत बन गया है। यहां से निकलने वाले राहगीरों को इस पेड़ की शीतल छाया यहां रुकने को मजबूर कर देती है। लोग यहां रुककर खरीदारी भी करते हैं। इससे 20 से अधिक परिवारों की रोजी-रोटी चल रही है। स्थानीय लोगों के अनुसार यह पेड़ 150 साल पुराना है। छतरपुर जिले के बागेश्वर धाम जाने और आने के लिए इसी मार्ग से होकर लोग गुजरते हैं। इस वजह से यह पेड़ ही लोगों का स्टॉप बना हुआ है और शाम को यहां का नजारा देखते ही बनता है।
बरगद के पेड़ का है विशेष महत्व
हिंदू धर्म में बरगद के पेड़ का विशेष महत्व है। भारत का राष्ट्रीय वृक्ष होने के साथ ही यह धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इस पेड़ के पत्ते, फल और छाल शारीरिक बीमारियों को दूर करने के काम आते हैं। पीजी कॉलेज दमोह में बॉटनी विभाग की प्राध्यापक डॉ. एनआर सुमन ने बताया कि इस पेड़ की पत्तियां एक घंटे में पांच मिली लीटर ऑक्सीजन देती हैं। यह पेड़ दिन में 20 घंटे से ज्यादा समय तक ऑक्सीजन देता है। इसके पत्तों से निकलने वाले दूध को चोट, मोच और सूजन पर दिन में दो से तीन बार मॉलिश करने से काफी आराम मिलता है।