
भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष सुभाष पटेल ने बताया कि जब राज्य सरकार का बजट पेश होता है, तो भाषणों में सुनने में यह बहुत फायदे का लगता है। और यही हाल केंद्र सरकार के बजट का भी रहता है, लेकिन धरातल पर इसका सही से क्रियान्वयन नहीं हो पाता।
मध्य प्रदेश की मोहन यादव सरकार ने विधानसभा में बुधवार को अपना पहला बजट पेश किया है। मानसून सत्र के बीच में पेश किए गए इस बजट में विपक्ष ने जमकर हंगामा भी किया, लेकिन इस हंगामे के बीच भी वित्त मंत्री ने अपना पूरा बजट सदन के सामने पेश किया। विशेषज्ञों की मानें तो प्रदेश सरकार ने अपने पहले बजट में सभी वर्गों को साधने की कोशिश की है। खासकर कृषि को लाभ का धंधा बनाने और अन्नदाता किसान के लिए भी इस बजट में बड़े प्रावधान किए गए हैं। एक ओर प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई है तो वहीं किसानों की आर्थिक स्थिति समृद्ध बनाने के लिए भी इस बजट में नई योजनाओं को शुरू किए जाने की बात कही गई है। हालांकि प्रदेश सरकार के इस बजट से खंडवा के किसान निराश हैं। क्योंकि उनके अनुसार बजट प्रदेश सरकार का हो या केंद्र सरकार का। बजट सिर्फ भाषणों में ही अच्छा लगता है। धरातल पर इसका कुछ असर नहीं दिखता है। हालांकि उन्होंने माना कि अगर सरकार इस बजट को सही तरीके से लागू करती है तो, किसानों के लिए खेती सच में लाभ का धंधा बन सकती है।
बुधवार को मध्य प्रदेश की विधानसभा में पेश हुए बजट के बाद इसका किसानों पर कितना असर पड़ेगा, इसको लेकर बात करते हुए प्रदेश के खंडवा से भारतीय किसान संघ के अध्यक्ष सुभाष पटेल ने बताया कि जब राज्य सरकार का बजट पेश होता है, तो भाषणों में सुनने में यह बहुत फायदे का लगता है। और यही हाल केंद्र सरकार के बजट का भी रहता है, लेकिन धरातल पर इसका सही से क्रियान्वयन नहीं हो पाता। सुभाष ने बताया कि अभी सोयाबीन की उपज 4 हजार से लेकर 4 हजार 2 सौ रुपये क्विंटल के भाव से बिक रही है, जबकि इसका वास्तविक समर्थन मूल्य देखें तो 4 हजार 8 सौ रुपये क्विंटल है। इसी तरह प्रदेश सरकार ने कहा था कि वह गेहूं की उपज 2700 रुपए क्विंटल खरीदेगी, जबकि किसानों को मात्र 24 से 25 सौ रु क्विंटल में अपना गेहूं बेचना पड़ा था।
जैविक खेती को लेकर यह बोले किसान संगठन
उन्होंने बताया कि पिछले साल कम बारिश के चलते भी फसलों को खंडवा में नुकसान हुआ था, जिसका भी फसल बीमा का लाभ किसानों को आज तक नहीं मिल पाया है। इसीलिए ऐसी स्थितियों को देखकर यह बजट सिर्फ सुनने में ही अच्छा लगता है। वहीं बजट में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कही गई है। जिस पर किसानों का कहना है कि सरकार अगर किसानों के एफपीओ को सुलभ तरीके से बढ़ावा दे तब ही प्राकृतिक खेती कर पाना संभव है। इसके साथ ही प्राकृतिक खेती की उपज का विक्रय करने के लिए सरकार को अलग से प्लेटफार्म भी उपलब्ध कराना चाहिए, और उसका उचित दाम भी मिलना चाहिए। तब ही किसान प्राकृतिक खेती की तरफ कदम बढ़ाएगा। उन्होंने बताया कि अभी की स्थिति तो यह है कि प्राकृतिक खेती से उपजी फसल और जैविक खेती की फसल का मूल्य किसान को एक ही बराबर मिल रहा है, जबकि प्राकृतिक खेती की फसल की लागत कम होती है।