
पांर्ढुना में हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में, पोला त्योहार के दूसरे दिन पांर्ढुना और सावर गांव के बीच बहने वाली जाम नदी के दोनों किनारों से दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाकर इस परंपरा को निभाते हैं। इसके पीछे की कहानी भी चौंकाने वाली है।
मप्र का नया जिला पांढुर्ना अपने एक विशेष खेल के चलते प्रदेशभर में अलग पहचान रखता है। उसी खेल का दिन एक फिर आ गया है, जिसे ”गोटमार” के नाम से जाना जाता है। पांढुर्ना में गोटमार मेले के दौरान शांति और मानव जीवन की सुरक्षा के लिए प्रतिबंधात्मक आदेश जारी किए गए हैं, क्योंकि यह खूनी खेल सालों से चलते आ रहा है। इसमें दो गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं, जिसमें हर साल कई लोग घायल होते हैं, आज भी यह खेल खेला जा रहा है।
गोटमार खेल की कहानी
पांर्ढुना में हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में, पोला त्योहार के दूसरे दिन पांर्ढुना और सावर गांव के बीच बहने वाली जाम नदी के दोनों किनारों से दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर पत्थर बरसाकर इस परंपरा को निभाते हैं। गोटमार मेले की परंपरा बहुत पुरानी बताई जाती है, ये मेला कब शुरू हुआ इसका किसी को ठीक से अंदाजा नहीं है। हालांकि इसके पीछे लोग एक कहानी जरूर बताते हैं। पांढुर्ना गांव के एक लड़के का दिल सावर गांव की एक लड़की पर आ गया, फिर दोनों का इश्क परवान चढ़ा और दोनों ने प्रेम विवाह कर लिया। एक दिन पांढुर्ना गांव का लड़का अपने दोस्तों के साथ सावर गांव पहुंचा और अपनी प्रेमिका को भगाकर ले जा रहा था, जब दोनों जाम नदी को पार कर रहे थे। तभी सावर गांव के लोग वहां पहुंच गए और फिर भीड़ ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए।
जैसे ही इस बात की जानकारी जब पांढुर्ना गांव के लोगों को लगी तो वे भी पत्थर का जबाव पत्थर से देने पहुंच गए। इसके बाद पांढुर्णा और सावरगांव के बीच बहती नदी के दोनों किनारों से बदले के पत्थर बरसाने लगे। जिसमें नदी के बीच ही लड़का और लड़की की मौत हो गई। दोनों की मौत के बाद पांढुर्ना और सावर गांव के लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ। लिहाजा दोनों गांव के लोगों ने प्रेमी-प्रेमिका का शव ले जाकर मां चंडी के मंदिर में रखा और पूजा-पाठ के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया। इसके बाद से ही परंपरा के नाम पर ये खूनी खेल शुरू हो गया, जो अब तक चल रहा है।
आदेश के बाद भी नहीं बदला स्वरूप
गोटमार मेले का स्वरूप बदलने मानव आयोग, उच्च न्यायालय के आदेश के परिपालन में जिला प्रशासन को सख्त निर्देश होते हैं। परन्त्तु गत कई वर्षों के प्रयासों के बाद जिला प्रशासन आखिरकार गोटमार मेले का स्वरूप बदल पाने में नाकाम साबित हो रहा है। हालांकि शहर के बुद्धिजीवी और गणमान्य लोगों का कहना है कि मानव आयोग दिशा-निर्देश देता है और जिला प्रशासन पालनार्थ प्रति वर्ष यह गोटमार मेले का आयोजन जैसे-तैसे पूर्ण कर अपना प्रतिवेदन मानव आयोग को सौंप देता है।
गोफन और शराब प्रतिबंध
गोटमार मेले में पुलिस और आबकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी को मेला स्थल पर गोफन से पत्थर चलाने वाले लोगों पर नजर बनाए रखने और मेला के दौरान 24 घंटे पहले जिला कलेक्टर अधिकारी बिंदुवार सख्त आदेश जारी कर धारा 144 लागू कर देते हैं। गोटमार मेले में प्रतिबंध के बाद गोफन (रस्सी से पत्थर बांधकर फेंकने) वाले व्यक्ति को ड्रोन कैमरे की मदद से चिन्हित कर पहचान के बाद कड़ी कार्रवाई की जाती है।