
बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज में बुंदेलखंड का पहला नेत्र प्रत्यारोपण हुआ है। करीब एक सप्ताह पहले हुए नेत्रदान से दो लोगों के जीवन में उजाला हुआ है। एक व्यक्ति किसान है तो दूसरा बीड़ी मजदूर है। दोनों की उम्र 65 वर्ष है। किसान की आंख एक साल पहले ग्लूकोमा रोग होने की वजह से खराब हो गई थी और दूसरी आंख मोतियाबिंद ऑपरेशन के बाद सूजन आने से खराब हो गई थी। उसे दोनों आंखों से दिखाई देना बंद हो गया था।
जबकि बीड़ी मजदूर की आंख में पस जमा हो जाने के कारण पुतली गलने लगी थी। इस कारण उसे दोनों आंखों से दिखना बंद हो गया। नेत्र ज्योति मिलने के बाद किसान ने सबसे पहले मां दुर्गा की तस्वीर के दर्शन किए। बीड़ी मजदूर ने अपने पांच साल के पोते को देखने की इच्छा जताई है।
डीन डॉ. पीएस ठाकुर बताते हैं कि 24 सितंबर की शाम 7 बजे वैश्य महासम्मेलन के निकेश गुप्ता का फोन आया। उन्होंने कहा कि संगठन के पदाधिकारी मनीष गुप्ता की पत्नी शांति के कॉर्निया दान करना है। सूचना मिलते ही दो टीमें तैयार की गईं। पहली टीम ने मकरोनिया स्थित अस्पताल में कॉर्निया सुरक्षित किया। दूसरी टीम ने नेत्र रोग विभाग में रजिस्टर्ड 26 लोगों से संपर्क करना शुरू किया। इनमें से 6 लोग ही आए। इन लोगों की और कॉर्निया की जांच की गई। जांच के दौरान किसान रमेश (परिवर्तित नाम) को एक साल से दोनों आंखों में अंधत्व की समस्या पाई गई।
लिहाजा रमेश की (आप्टिकल केरेटोप्लास्टी) एक आंख का नेत्र प्रत्यारोपण करने का निर्णय लिया गया। दूसरे कॉर्निया के लिए 3 लोगों से संपर्क किया गया। इसमें से जांच के दौरान बीड़ी मजदूर महेश (परिवर्तित नाम) को 3 माह से अंधत्व की समस्या पाई गई। महेश की थैराप्यूटिक केरेटोप्लास्टी की गई है। दोनों मरीजों का नेत्र प्रत्यारोपण हो गया है। रमेश सर्जरी के बाद देखने भी लगे हैं। महेश की आंखों की पट्टी खुलने में अभी 15 दिन लगेंगे।
बीएमसी के चार डॉक्टरों की टीम ने ढाई घंटे में की सर्जरी
डॉ नेत्र रोग के विभागाध्यक्ष डॉ. प्रवीण खरे ने बताया कि मैं और डॉ. सारिका चौहान, डॉ. नितिन कुशवाहा तथा डॉ. आयुषी महाजन पहली बार कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने जा रहे थे। सबसे चुनौतीपूर्ण आंख से खराब कॉर्निया निकालने और दूसरा कॉर्निया लगाने के बाद जल्द से जल्द दो टांके लगाना था। जिसे हम लोगों ने समय सीमा में कर लिया। पूरी सर्जरी में करीब ढाई घंटे का समय लगा। प्रत्यारोपण के बाद मरीज को 14 दिन आब्जर्वेशन में रखा गया है। क्योंकि इस दौरान संक्रमण फैलने की संभावना ज्यादा रहती है।
5 साल में 8 नेत्रदान, 15 दिन में ट्रांसप्लांट
डॉ. सारिका चौहान ने बताया कि नेत्र रोग विभाग में नेत्र बैंक की शुरुआत 5 साल पहले की गई थी। 2023 तक चार साल में शहर के लोगों ने 5 नेत्रदान किए थे। इस साल सबसे ज्यादा 3 नेत्रदान हुए हैं। इस तरह अब तक कुल 8 नेत्रदान हो चुके है। यह संयोग है कि बीएमसी को 15 दिन पहले ट्रांसप्लांट की स्वीकृति मिली है और इस दौरान पहला ट्रांसप्लांट भी हो गया।
दो आंखों से चार जिंदगियां हो सकती हैं रोशन
डॉ. खरे के अनुसार दो कॉर्निया से चार लोगों को नेत्र ज्योति दी जा सकती है। लेकिन इसके लिए नेत्रदाता और आंखों का पूरी तरह स्वस्थ होना जरूरी है। सामान्य तौर पर आंख में 5 लेयर होती हैं। जरूरत के अनुसार इनका अलग-अलग ट्रांसप्लांट कर दो से ज्यादा लोगों को नेत्र ज्योति दी जा सकती है। कॉलेज में अभी ट्रांसप्लांट शुरू हुआ है। धीरे-धीरे इस एडवांस तकनीक से ट्रांसप्लांट भी होने लगेंगे। इनमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण एंडोथीनियम लेयर है। यह दोबारा नहीं बनती।
1 मिलीमीटर में 2500 सेल होने पर कॉर्निया को अच्छा यानी आप्टिकल केरेटोप्लास्टी लायक माना जाता है। इससे कम सेल होने पर कॉर्निया हल्का माना जाता है और इससे थैराप्यूटिक केरेटोप्लास्टी की जाती है। जन्मजात अंधत्व की समस्या में दो माह से 5 साल के दौरान प्रत्यारोपण हो जाने पर दिखाई देने की संभावना होती है। जबकि लंबे समय तक अंधत्व रहने पर ट्रांसप्लांट के बाद भी नेत्र ज्योति आने की संभावना 1 फीसदी होती है।