
डीएफओ ईश्वर जरांडे का कहना है लाल मुंह का बंदर जंगली जीव की श्रेणी से बाहर हो गया है। यदि उसके साथ छेड़छाड़ होती है तो वन अपराध दर्ज नहीं होता। काले मुंह के बंदर को ही संरक्षित किया जा सकता है।
जंगलों में चहल कदमी करने वाले लाल मुंह के बंदर जंगली जीव की श्रेणी से बाहर हो चुके हैं। इसलिए अब यह बंदर जंगल की अपेक्षा इंसानों के बीच अधिक दिखाई दे रहे हैं। जिन बंदरों को पहले जंगली इलाके में ही देखा जाता था आज वह रहवासी इलाके, धार्मिक स्थलों और सड़कों पर आसानी से झुंड में दिखाई दे रहे हैं। वन विभाग अब इन्हें संरक्षण नहीं दे सकता है यही कारण है अपनी आवाज और अटखेलियों से लोगों का ध्यान खींचने वाले बंदर सड़कों पर घूम रहे हैं।
जंगल से लगी सड़कों पर सुबह होते ही बंदरों का कब्जा हो जाता है। तेंदूखेड़ा से बमोहरी वाले मुख्य मार्ग पर यह लाल मुंह के बंदर निकलने वाले राहगीरों का पीछा करते हैं, ताकि उन्हें कुछ ना कुछ खाने को दिया जाए। कई बार खुद दुर्घटना का शिकार भी होते हैं या दुर्घटना का सबब बनते हैं।
झुंड में रहते है एक साथ
दो साल पहले भारत सरकार के द्वारा लाल मुंह के बंदरों को जंगली जीव की श्रेणी से बाहर कर दिया है। अब केवल काले मुंह का बंदर ही वन विभाग के अधीन आता है। इसलिए लाल बंदर की सुरक्षा वन विभाग नहीं कर सकता। मंदिर, रहवासी इलाके, धार्मिक स्थलों और सड़कों पर आसानी से इन बंदरों का नजारा देखने को मिल रहा है। जिसे देखने लोग पहले जंगल या चिड़ियाघर जाते थे। किसी जंगल या बस्ती से दूर बने मंदिर जाएंगे, तो आसानी से बंदर देखने मिल जाएंगे। अगर आपके हाथ में कुछ दिख गया, तो बंदर उसे छीनने की कोशिश करेंगे। क्योंकि उन्हें इंसानों के भोजन की आदत लग गयी है। इसी आदत की वजह से सड़कों पर बंदरों के झुंड आसानी से मिलने लगे हैं।
पूर्व में इंसानों और वाहनों को देख यह बंदर जंगल की और भागने लगते थे, लेकिन अब वही बंदर वाहन और राहगीर को खड़ा देखते है तो मुख्य मार्ग पर पहुंच जाते है। दमोह डीएफओ ईश्वर जरांडे का कहना है कि लाल मुंह का बंदर जंगली जीव की श्रेणी से बाहर हो गया है। यदि उसके साथ छेड़छाड़ होती है तो वन अपराध दर्ज नहीं होता। केवल काले मुंह के बंदर को ही संरक्षित किया जा सकता है। सड़क किनारे बोर्ड लगाए हैं लोगों से अपील की गई कि बंदरों को सड़क पर कुछ भी खाने के लिए न डालें।