
किसान अक्सर धान की कटाई के बाद खेतों में लगी पराली को जला देते हैं, इससे प्रदूषण के साथ ही खेत में मौजूद जीव-जंतुओं और पर्यावरण को भी गंभीर नुकसान होता हैं। जिला प्रशासन ने कई मर्तबा किसानों को समझाइश भी दी पर इसका असर देखने को नहीं मिला।
इधर प्रदेश में पहली बार अब पराली जलाने के खिलाफ हाई कोर्ट बार आगे आया है। पर्यावरण और जनहित को देखते हुए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट बार ने निर्णय लिया है कि पराली जलाने वाले किसानों की कोई भी वकील पैरवी नहीं करेगा। हाईकोर्ट बार ने सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित किया है।
बार अध्यक्ष का कहना हैं कि किसानों को यह बताया जाएगा कि पराली का सही तरीके से उपयोग करने से मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और पर्यावरण को भी बचाया जा सकता हैं।
जैविक संरचना पर बुरा असर पड़ता
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक पराली जलाने से पत्तियों में मौजूद पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं और मृदा के तापमान में वृद्धि होती है। इससे मिट्टी की जैविक संरचना पर भी बुरा असर पड़ता है। साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ता है। जिससे धुंध और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता हैं।
पराली जलाने से आसपास की फसलों और आबादी में आग लगने का खतरा रहता है, इसके अलावा वायु प्रदूषण के कारण सड़क हादसों और बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है।
किसानों को इस प्रथा को रोकना चाहिए और पराली को जलाने के बजाय उसका सही तरीके से उपयोग करना चाहिए।
बैठक कर प्रस्ताव पारित
हाई कोर्ट बार के अध्यक्ष धन्य कुमार जैन ने इस संबंध में कार्यकारिणी के साथ बैठक कर प्रस्ताव पारित किया हैं कि कोई भी वकील पराली जलाने वाले किसानों की पैरवी नहीं करेगा।
उनका कहना हैं कि पराली जलाने से कृषि भूमि की उर्वरक क्षमता पर भी प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है साथ ही पर्यावरण भी प्रदूषित होता हैं।