
मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है। इसे आधार मानते हुए युगलपीठ ने जिला न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को निरस्त कर दिया और अपीलकर्ता को दोषमुक्त करार दिया।
हत्या के आरोपी की आजीवन कारावास की सजा हाईकोर्ट ने निरस्त कर दी है। हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने अपने अहम आदेश में कहा कि मृत्युपूर्व बयान की विश्वसनीयता दंड का आधार हो सकती है, लेकिन मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई अन्य साक्ष्य नहीं है।
हरदा निवासी बंटी सिंह की ओर से दायर अपील में कहा गया था कि उसके चचेरे भाई की पत्नी हर्षा सिंह जुलाई 2012 में गंभीर रूप से जल गई थीं, जिनकी उपचार के दौरान अगस्त में मौत हो गई। मृत्युपूर्व बयान में मृतिका ने कहा था कि बंटी रात में उसके कमरे में आया और उसके पति के सामने कहने लगा कि वह उससे प्यार करता है और उसे अपने साथ ले जाएगा। इसके बाद बंटी ने रसोई में रखा केरोसिन उस पर डालकर आग लगा दी। चचेरा भाई होने के कारण उसके पति ने इसका विरोध नहीं किया। गंभीर रूप से जलने के बाद महिला ने बाथरूम में जाकर आग बुझाई और कपड़े बदले। पड़ोसियों के दबाव में पति ने उसे उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया।
युगलपीठ ने सुनवाई के दौरान पाया कि पति-पत्नी अपने मकान की दूसरी मंजिल के कमरे में थे, जहां बिना किसी कृत्रिम साधन के चढ़कर नहीं जाया जा सकता था। अपीलकर्ता अगल-बगल के मकान में रहता था और जांच में यह पाया गया कि रसोई के अंदर केरोसिन नहीं था। पुलिस ने अपीलकर्ता समेत मृतिका के पति और ससुराल पक्ष के अन्य सदस्यों के खिलाफ हत्या और दहेज प्रताड़ना का मामला दर्ज किया था। न्यायालय ने अन्य आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए अपीलकर्ता को मृत्युपूर्व बयान के आधार पर सजा दी थी।
घटना की जानकारी मिलने के बाद महिला के माता-पिता अस्पताल पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने पुलिस में किसी प्रकार की शिकायत दर्ज नहीं करवाई। मृतका के माता-पिता और पड़ोसियों ने यह पुष्टि नहीं की कि ससुराल पक्ष दहेज के लिए प्रताड़ित करता था। युगलपीठ ने कहा कि इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि मृतिका ने अपने पति और ससुराल पक्ष को बचाने के लिए मनगढ़ंत कहानी गढ़ी हो।
मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं होने के आधार पर, युगलपीठ ने जिला न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त कर दिया।