
दमोह जिले में 27 स्कूलों में शुरू किए गए प्री-प्राइमरी स्कूल पायलट प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलीं। न ड्रेस, न खिलौने, न फर्नीचर उपलब्ध हुआ, और शिक्षकों की कमी के चलते बच्चों को प्रशिक्षु पढ़ा रहे हैं। संसाधनों और बजट की कमी के कारण बच्चों की उपस्थिति घटकर 40-50% रह गई है। योजना का उद्देश्य सरकारी स्कूलों से बच्चों को जोड़ना था, लेकिन क्रियान्वयन की कमी से यह असफल हो रही है।
सरकारी स्कूलों में निजी स्कूलों की तर्ज पर प्री-प्राइमरी कक्षाएं शुरू करने का दमोह जिले में 27 स्कूलों में लागू पायलट प्रोजेक्ट अपनी शुरुआत में ही असफल हो गया। नर्सरी, केजी-1 और केजी-2 की कक्षाओं के लिए एडमिशन तो हुए, लेकिन बच्चों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल सकीं। ड्रेस, खिलौने, बैठने के लिए फर्नीचर और पढ़ाने के लिए विशेषज्ञ शिक्षक तक नहीं पहुंचे।
सुविधाओं का अभाव
पांच महीने बीतने के बाद भी स्कूलों में बिजली, पानी और शौचालय जैसी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध नहीं हुई हैं। बच्चों को जमीन पर बैठकर पढ़ना पड़ रहा है। उपस्थिति भी केवल 40-50% तक सिमट गई है। शासकीय हिरदेपुर स्कूल में नर्सरी से दूसरी कक्षा तक के बच्चे एक ही कमरे में पढ़ रहे हैं। यहां 33 बच्चों के लिए न तो खिलौने हैं और न ही शिक्षक। स्कूल की शिक्षिका मेडिकल अवकाश पर हैं, और बच्चों को डीएड की एक प्रशिक्षु पढ़ा रही हैं।
शिक्षकों की कमी, संसाधनों की जुगाड़
शासकीय वीर दुर्गादास हाईस्कूल में बच्चों को शिक्षिका नीति पाठक अपने घर से लाए खिलौनों और मोबाइल के माध्यम से पढ़ा रही हैं। यहां 27 बच्चों में से 14 ही उपस्थित मिले। उनके मुताबिक, शासन से कोई शैक्षणिक सामग्री नहीं मिली है, और ठंड के कारण बच्चों की उपस्थिति और घट गई है।
बजट न मिलने से व्यवस्था ठप
जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) मुकेश द्विवेदी का कहना है कि यह योजना शासन स्तर की है, लेकिन बजट जारी न होने के कारण सुविधाएं नहीं दी जा सकीं। जैसे ही बजट मिलेगा, व्यवस्थाएं शुरू कर दी जाएंगी।
उद्देश्य और असफलता
प्री-प्राइमरी स्कूल खोलने का उद्देश्य अधिक बच्चों को सरकारी स्कूलों से जोड़ना था। बच्चों को प्रारंभिक अक्षर ज्ञान देकर उनकी शिक्षा को सरल बनाना इस योजना का लक्ष्य था। लेकिन बिना पर्याप्त बजट और व्यवस्था के, योजना पहले ही साल विफल होती नजर आ रही है।