
Bhopal: एक चाहत और उमंग लिए परदेस का रुख करने वाले कई बार किसी साजिश का शिकार हो जाते हैं तो कभी गलती से ऐसा कुछ कर बैठते हैं, जो उस पराए मुल्क में उन्हें नहीं करना चाहिए। नतीजा सजा या अपनों से कनेक्शन कटने के रूप में सामने आता है। गरीबी, अशिक्षा और अंतरराष्ट्रीय नियम कायदों की जानकारी न होने से घर वापसी इतनी ही मुश्किल हो जाती है, जितना किसी मुल्क में प्रवेश की मशक्कते होती हैं। राजधानी भोपाल के एक युवा सैयद आबिद हुसैन ने इन स्थितियों पर गहरा होम वर्क किया और विदेशों में फंसे अपने देश के लोगों को घर वापसी की कोशिशें शुरू की।
रियल लाइफ के बजरंगी भाईजान के नाम से मशहूर हो चुके सैयद आबिद हुसैन बताते हैं कि इस तरह के सबसे ज्यादा मामले सऊदी अरब और पाकिसन में होते हैं। इसके अलावा वे बहरीन, कुवैत, यूक्रेन, मलेशिया, कंबोडिया जैसे कई मुल्कों से भी घर वापसी करवा चुके हैं। आबिद कहते हैं कि सबसे ज्यादा नौकरी के नाम पर छलावा सऊदी अरब में होता है। वहां पहुंचते ही संबंधित कंपनी के एजेंट पासपोर्ट छीन लेते हैं, जिसको वापस लेना बेहद मुश्किलभरा काम है। तनख्वाह न देना या निर्धारित से कम पैसा देना यहां आम बात है। इसके अलावा एग्रीमेंट के विपरीत दोगुना काम करवाना भी यहां की परम्परा का हिस्सा कहा जा सकता है। इसी तरह पाकिस्तान में अगर गलती से भी कोई सरहद पार कर गया, तो वह जासूस के दायरे में आ जाता है। इस इल्जाम के लगने के बाद उसे अपनी बेगुनाही साबित करने में बरसों लग जाते हैं।
ऐसे होती है बजरंगी आबिद की वापसी प्रक्रिया
आबिद कहते हैं कि परेशानी में फंसे हुए व्यक्ति द्वारा उनसे संपर्क करने या कहीं से उन्हें इसकी जानकारी मिलने पर वे संबंधित से संपर्क करते हैं। फिर उसके कागज और दस्तावेज पूरे करना, सरकार, विदेश मंत्रालय और दूतावास से संपर्क करने की प्रक्रिया शुरू की जाती है। आबिद कहते हैं कि उनका मकसद लोगों को जल्द से जल्द वापस भारत पहुंचाना होता है। उनका कहना है कि ईमानदार प्रयासों से इस कार्य में उनको सफलता भी मिलती है। बहुत मामले में आबिद मदद के लिए सीधे कंपनी या मालिक से बात कर के मामले को हल कर देते हैं।
बढ़ रहा सेवा का दायरा
खाड़ी के देशों, मलेशिया एवं अन्य देशों से आबिद अब तक सौ से ज्यादा लोगों की मदद कर चुके हैं। आबिद ने बताया कि अब नेपाल के रहने वाले लोग भी इनसे मदद मांगने में नहीं हिचकिचाते हैं। आमतौर पर ये वह लोग होते हैं, जो ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होते या फिर उन्हें कानूनों का पता नहीं होता।
ऐसे हुई शुरुआत
आबिद हुसैन ने सबसे पहले 2016 में बांग्लादेश के रहने वाले रमजान नामक बच्चे की मुहीम चलाई थी, जो भोपाल में फंस गया था। आबिद कहते हैं कि उसी वक्त हमें ये ख्याल आया कि अपने वतन के लोग भी दूसरे मुल्कों में फंसे होंगे। उनकी वतन वापसी कैसे होती होगी। उसी दौरान जितेन्द्र अर्जुनवार का मामला सामने आया। दिमागी रूप से कमजोर जितेन्द्र पाकिस्तान की करांची जेल में बंद था। उसकी वापसी के लिए बहुत लंबी लड़ाई लड़ी गई। जिसके चलते विदेश मंत्रालय के प्रयास से हमारा जितेन्द्र वापस आ गया।
अवार्ड कई, दरकार दुआओं की
आबिद हुसैन को उनकी उत्कृष्ट समाजसेवा और विदेशों में फंसे निर्दोष भारतीयों की मदद करने के चलते सैंकड़ों अवार्ड से नवाजा जा चुका है, लेकिन आबिद कहते हैं कि उनके लिए सच्चा ईनाम वह होता है, जो अपनों से मिलने पर किसी मजलूम के होंठों पर आई मुस्कान से मिलता है। आबिद को अब तक मुहाफ़िज़ ए इंसानियत अवार्ड, रेक्स करमवीर गोलोबल फेलोवशिफ, कर्मवीर चक्र अवार्ड, एशिया एक्सलेंस अवॉर्ड, एसडीएफ इंटरनेशनल एक्सलेंस अवार्ड, यूनिटी आवार्ड, हुमिटेरियन एक्सलेंस अवार्ड, राष्ट्र प्रेरणा अवार्ड, स्वामी विवेकानंद लीडरशिप अवार्ड, इंटरनेशनल आइकॉन अवार्ड, इंस्पायरिंग पर्सनालिटी अवार्ड, राष्ट्रीय धरोहर सम्मान, इंटरनेशनल ओपन यूनिवर्सिटी यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका द्वारा हॉनरी डॉक्टरेट पीएचडी की डिग्री और इंटरनेशनल एक्सीलेंस अवार्ड से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा आबिद हुसैन को नइज़रिया एवं श्रीलंका से ऑनलइन मानद डॉक्टरेट की उपाधि नवाजा भी जा चुका है