
मध्यप्रदेश में सागर जिले के एक गांव में सड़क के इंतजार में लोगों की आंखें पथरा गईं। गांव में बारिश के दौरान यदि कोई बीमार पड़ता है तो उसे खाट पर रखकर ले जाना पड़ता है।
बुंदेलखंड अंचल में बारिश का मौसम अनेक परेशानियां लेकर आता है। खासतौर पर उन ग्रामों के लोग बारिश के तीन महीने नरकीय जिंदगी जीते हैं। जहां आज तक मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। ऐसे ही एक गांव के हालात हम आपको बता रहे हैं। मामला है सागर जिले की बंडा विधानसभा क्षेत्र के गांव कलराहो टपरा का।
बता दें कि स्टेट हाइवे से महज दो किलोमीटर दूर इस गांव की आबादी 300 के लगभग है। यहां के ग्रामवासियों के अनुसार, इस गांव में विकसित भारत जैसे नारे इन ग्रामीणों को खोखले लगते हैं। इनके गांव में विकास के पहुंचने की बात तो दूर, यहां आज तक विकास झांका तक नहीं है। कलराहो टपरा गांव में सबसे बड़ी मुसीबत यह ग्रामीण बारिश में झेलते हैं। क्योंकि इनके गांव आने-जाने के लिए कोई पक्की सड़क नहीं है। अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे इलाज के लिए खाट पर ले जाना पड़ता है। ग्रामीण पूरे बारिश भगवान से बस यही दुआ करते हैं कि कोई बीमार न हो।
ग्रामीण बताते हैं कि उनके गांव में ग्रामीणों को शासन की अधिकांश योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है। ग्राम के बुजुर्ग बताते हैं कि उन्होंने कितने ही जनप्रतिनिधि देख लिए, उनसे गुहार लगा ली। लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात रहता है और लोग अब थक हार कर बैठ गए हैं।
टपरा गांव जहां आजादी के सात दशक बाद भी आज तक सड़क नहीं बन पाई। जबकि गांव स्टेट हाइवे से दो से तीन किलोमीटर दूरी पर बसा है। जहां मेन रोड से एक किलोमीटर पक्की सड़क तक नहीं बन पाई। गांव में न पक्के मकान हैं और न कोई अन्य सुविधा। अगर कोई बीमार हो जाए तो उसे इलाज के लिए खाट पर ले जाना पड़ता है। पक्के मकान तक नहीं हैं। वहीं, गांव की सड़कों के लिए ग्रामीणों ने कई आवेदन निवेदन किया। सरपंच, सचिव, विधायक, सांसद और मंत्री से लेकर तमाम जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों से गुहार लगाई। आश्वासन तो खूब मिले, लेकिन इस गांव के हालत जस के तस रहे।
टपरा गांव में एक ही मुख्य सड़क है, जो कीचड़ से सनी पगडंडी में बदल चुकी है। इस पगडंडी के सहारे ही गांव वाले निकलते हैं। 75 साल की बुजुर्ग महिला देशराजरानी बताती हैं कि अब तो सरकार से उम्मीद ही छूट गई है। गांव के ही स्थानीय निवासी कहते हैं कि गांव की सड़क के लिए सांसद से लेकर विधायक तक से गुहार लगा चुके हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ग्रामीण महिलाएं बताती हैं कि कई बार तो जाते वक्त सड़क पर ही बच्चे पैदा हो गए। लगता नहीं कि हम अपने गांव में कभी सड़क देख पाएंगे।