
पिछले कुछ वर्षों में आर्किटेक्चर इंडस्ट्री में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, अब रेसीडेंशियल और कॉर्पोरेट बिल्डिंग ही नहीं गार्डन्स, पार्क्स यहां तक की स्कूल्स में भी आर्किटेक्चर अहम भूमिका निभा रहा है। शिक्षा में इनोवेशन सदैव से ही बेहतर परिणाम लाने का एक महत्वपूर्ण साधन रहा है। ऐसे में यदि शिक्षा को आर्किटेक्चर के साथ जोड़ दिया जाए तो यह न केवल विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान प्रदान करने में सहायक होता है, बल्कि स्कूल और उसके आसपास के वातावरण को भी सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है, जो बच्चों की मनोस्थिति और सीखने की क्षमता को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कहना है मेलबर्न की प्रसिद्ध आर्किटेक्ट नदीन समाह का जो इन दिनों इंदौर में हैं और एक स्कूल कैम्पस को तैयार कर रही हैं।
नदीन समाह ने कहा बच्चों के जीवन में उस जगह का बहुत ही खास महत्व होता है जहां वह सारा दिन गुजारते हैं इसलिए स्कूल का बच्चों के हिसाब से बना होना बेहद आवश्यक है। यह न केवल उनके मन बल्कि उनके मस्तिष्क पर भी गहरा प्रभाव डालता है। वेस्टर्न आर्किटेक्चर में हम यह सीखते हैं कि किस तरह से स्कूल को बच्चों के अनुरूप बनाया जा सके। स्कूल की इमारत, आसपास का प्राकृतिक वातावरण और बच्चों के लिए सीखने का स्थान बनाने में क्या सोच विचार किया गया है, यह सब शिक्षा को प्रभावित करता है। भारत की बेहतरीन शिक्षा पद्धति के साथ यदि वेस्टर्न आर्किटेक्चर तैयार हो जाए तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। स्कूलों को एनर्जी-एफिशिएंट तरीके से डिजाइन किया जाना चाहिए ताकि पर्यावरण पर उनका प्रभाव कम हो। प्राकृतिक प्रकाश और वेंटिलेशन का उपयोग करके ऊर्जा की बचत की जा सकती है।
मीडिया से बातचीत करते हुए द मदर ब्लॉसम इंटरनेशनल स्कूल के डायरेक्टर्स वंदना नागर और अरुण जोशी ने कहा हमने ऑस्ट्रेलिया में 13 साल से अधिक समय बिताया है और वहां पढ़ाया भी है। हमें इंदौर में ऐसा स्कूल स्थापित करना है, जिसने शिक्षा का ऐसा इनोवेशन पहले कभी न देखा हो। हम ऑस्ट्रेलियाई पाठ्यक्रम और शिक्षण अनुभव को भारत की समग्र शिक्षा के समग्र दर्शन के साथ मिलाकर एक अनूठा पाठ्यक्रम तैयार कर रहे हैं। इस स्कूल में बच्चों को अपनी शिक्षा का नेतृत्व खुद संभालने, आत्मविश्वास से भरपूर बनने और अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का अवसर मिलेगा। हम सीखने में चेतना को महत्वपूर्ण मानते हैं। हमारा मानना है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस नए युग में सीखने का तरीका बदल रहा है। हमें इस पुरानी रट्टामार शिक्षा और परीक्षा केंद्रित शिक्षा पद्धति को बदलना है और प्रोजेक्ट आधारित सीखने पर जोर देना है।
वंदना नागर और अरुण जोशी ने आगे कहा हमें भारतीय संस्कृति पर गर्व है। स्कूल प्रोजेक्ट में स्थानीय संसाधनों का उपयोग किया जा रहा है, स्थानीय लोगों और पारंपरिक कौशल को शामिल किया जा रहा है। स्कूल के वातावरण में रहते हुए ही बच्चों को अपनी संस्कृति को सीखने का मौका मिलेगा। आज जो कुछ भी बनाया जा रहा है, उसका भविष्य तभी है, जब हम भविष्य को ध्यान में रखकर योजना बनाएं। यह प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर काम करे और भविष्य की दुनिया के बच्चों के लिए संभावनाएं पैदा करे।
