
हरदौल अखाड़े के उस्ताद रहे रामचन्द्र पाठक के निधन पर शिष्यों ने दी अनौखी विदाई।
दमोह में अखाड़े के उस्ताद रहे रामचंद्र पाठक के निधन पर उनके शिष्यों ने मुक्तिधाम में उनकी अंतिम विदाई के पहले अखाड़े का प्रदर्शन किया। बुंदेलखंड में ऐसी परंपरा है कि जब भी अखाड़े के गुरु का निधन होता है तो उनके शिष्य मुक्तिधाम में जाकर अखाड़े का प्रदर्शन करते हैं।
महंत पंडित रामचन्द्र पाठक लंबे समय से बीमार चल रहे थे शनिवार दोपहर उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर सुनते ही पूरे जिले भर से लोग उनके घर पहुंचे और उनकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए। सालों पहले हरदौल अखाड़े में रामचंद्र पाठक उस्ताद के रूप में युवाओं को हथियार चलाने के तरीके सीखने थे। दशहरा पर्व के मौके पर देवी प्रतिमाओं के विसर्जन के दौरान निकलने वाले अखाड़े में ये युवा अपनी उन प्रतिभाओं का प्रदर्शन करते थे।शाम 4:00 बजे उनके निवास से अंतिम यात्रा निकाली गई जो शहर के सीता बाबड़ी मुक्ति धाम पहुंची। यहां पर उनके शिष्यों ने अखाड़े के हथियार ले जाकर वहां प्रदर्शन किया। किसी ने पटा चलाया तो किसी ने लाठी घुमाई, किसी ने तलवार, तो किसी वनेटी, फरसा चक्र का प्रदर्शन किया। वे लगभग 85 वर्ष के थे । अखाड़े के उस्ताद होने के अलावा रामचंद्र पाठक एक धर्माचार्य भी थे। उन्हें सभी वेदों का बेहतर ज्ञान था। शहर के लोग उनके प्रति अटूट आस्था रखते थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन यज्ञ, अनुष्ठान और पौरोहित्य कर्म करते व्यतीत किया । दमोह नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष मनु मिश्रा ने कहा कि महंत रामचन्द्र पाठक के दुःखद निधन से बुंदेलखंड के लिए उस्ताद और विद्वान पंडित के रूप में क्षति हुई है। आज बुंदेली परम्परा के अनुसार हरदौल अखाड़े के उस्ताद के लिए अखाड़े के कलाकारों ने प्रदर्शन कर नम आंखों से विदाई दी है। भाजपा नेता मोंटी रायकवार ने बताया कि बुंदेलखंड में ऐसी परंपरा है कि अखाड़े के गुरु को शिष्य अंतिम यात्रा के दौरान इसी तरह विदाई देते हैं।