
सागर के तिलकगंज स्थित निजी अस्पताल में दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग से जन्में बच्चे को 100 रुपए के स्टांप पर गोद देने की कागजी कार्रवाई करने का मामला सामने आया है। नवजात को स्टांप पर गोदनामा लिखकर दूसरे परिवार को देने की तैयारी हो गई थी।
मामले की सूचना मिलते ही पुलिस ने नवजात और नाबालिग प्रसूता को अभिरक्षा में लेकर बालिका गृह में रखवाया है। मामले की जानकारी मिलते ही मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने संज्ञान लिया और नवजात के खरीद-फरोख्त की आशंका के चलते पुलिस अधीक्षक को पत्र जारी कर जांच के निर्देश दिए हैं।
दरअसल, तिलकगंज स्थित सूर्या मल्टीस्पेशिलिटी अस्पताल में 26 नवंबर को दुष्कर्म पीड़िता का प्रसव हुआ था। सूचना पर बाल कल्याण समिति, किशोर न्याय बोर्ड सहित अन्य पुलिस अमला अस्पताल पहुंचा। जहां प्रसूता को दस्तयाब किया गया।
मामले में कैंट थाना पुलिस ने नाबालिग से दुष्कर्म करने वाले आरोपी के खिलाफ मामला भी दर्ज किया है। जिसको लेकर जांच चल रही है। इसी बीच नाबालिग पीड़िता के परिवार ने 6 दिसंबर को उससे जन्मीं नवजात को कैंट थाना क्षेत्र के भैंसा पहाड़ी निवासी एक परिवार को गोदनामा लिख दिया।
मामला सामने आने पर पुलिस जांच में जुटी गई है। बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने बताया कि दत्तकग्रहण की यह प्रक्रिया वैधानिक नहीं है। बच्चे को स्टांप पर नोटरी कर गोद नहीं लिया जा सकता। इसमें चाइल्ड ट्रैफिकिंग की आशंका है। मामले में पुलिस को जांच के निर्देश दिए गए हैं।
बच्चा गोद लेने की यह है प्रक्रिया
(म.प्र) बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अनुसार, बिना न्यायालय के आदेश के किसी प्रकार से बच्चे के दत्तकग्रहण की प्रक्रिया नहीं की जा सकती। यदि बच्चा गोद लेने वाले से ब्लड रिलेशन भी है तब भी न्यायालय के आदेश के बाद भी बच्चे को गोद दिया जा सकता है।
ऐसे मामलों में खासतौर पर जिनमें बच्चा नाबालिग से जन्मा हो और मामला न्यायालय में विचाराधीन हो। यह नियम चाइल्ड ट्रैफिकिंग को रोकने बनाए गए थे। नियमानुसार नवजात या उसके जन्म के बाद दत्तकग्रहण की प्रक्रिया होती है।
न्यायालय के आदेश पर बच्चे को कारा (सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी) में रजिस्टर्ड कराया जाता है। गोद लेने वाला परिवार मिलने के बाद अंत में एक विज्ञापन भी जारी करना अनिवार्य है। इसमें बच्चे को अपने जैविक माता-पिता से अलग करने का आदेश अलग से जारी होता है।