
विंध्य अंचल के प्रमुख पर्व वट सावित्री व्रत को लेकर रीवा जिले के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सोमवार को दिनभर श्रद्धा और आस्था का माहौल बना रहा। सुहागिन महिलाओं ने अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखा। मंदिरों और वट वृक्षों के आसपास महिलाओं की भारी भीड़ देखी गई।
विशेष रूप से महामृत्युंजय मंदिर में सुबह से ही महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में पूजा सामग्री के साथ पहुंचने लगी थीं। पूजा के दौरान महिलाओं ने वट वृक्ष की परिक्रमा कर उसे कच्चे सूत से बांधा और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी।
व्रत की धार्मिक महत्ता और मान्यता
महामृत्युंजय मंदिर के पुजारी पंडित रमेश गौतम ने बताया कि वट सावित्री व्रत को भरणी व कृतिका नक्षत्र तथा शोभन व अतिगंड योग में किया जाना विशेष फलदायी माना गया है। इस दिन त्रिदेव-ब्रह्मा, विष्णु और महेश – की पूजा कर वट वृक्ष की आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि सावित्री ने इसी वृक्ष के नीचे यमराज से संघर्ष कर अपने पति सत्यवान को पुनर्जीवन दिलाया था।
सोमवार को अमावस्या तिथि के साथ सोमवती अमावस्या का संयोग व्रत की पुण्य प्राप्ति को और भी बढ़ा देता है। मान्यता है कि इस व्रत से महिलाओं के जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य बना रहता है, वहीं पति के जीवन से संकटों का नाश होता है।
पूजन सामग्री और परंपरा, पूजन का शुभ मुहूर्त
व्रत करने आई महिला निधि द्विवेदी ने बताया कि पूजा के लिए सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप-दीप, बांस का पंखा, कच्चा सूत, कलश, बरगद का फल, सुहाग सामग्री और थाल आदि की आवश्यकता होती है। पूजन के बाद महिलाएं अपने पतियों को पंखा झेलकर उनके कष्ट हरने की प्रार्थना करती हैं।
इस वर्ष वट सावित्री व्रत का शुभ मुहूर्त सोमवार सुबह 11:20 से दोपहर 12:14 बजे तक (अभिजीत मुहूर्त) रहा। रीवा और विंध्य क्षेत्र में इस पर्व को लेकर विशेष आस्था देखी गई, और लगभग हर घर की महिलाओं ने व्रत रखकर पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन किया।