
दमोह में जन्मे पंडित ज्वाला प्रसाद तिवारी एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने अपने जीवन काल में बॉलीवुड में 9 फिल्मों का निर्माण किया. 7 साल तक बुलियन मार्केट के अध्यक्ष रहे. उन्होंने बैंक की स्थापना और कृषि में नवाचार करके लोगों को नई दिशा दी. ज्वाला प्रसाद का जन्म दमोह जिले के ग्राम ढिगसर में 1906 में हुआ था और उनकी मृत्य 1991 में दमोह में ही हुई थी. अपने जीवनकाल में उन्होंने समाज और देश के विकास में कई अहम कार्य किए थे.
अंग्रेजों के शासन काल में दमोह के अपर कलेक्टर बने
ढिगसर निवासी शिक्षक रामभरोसे तिवारी के यहां 6 जून 1906 को पंडित ज्वाला प्रसाद का जन्म हुआ था. उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा दमोह में हुई थी. इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई रॉबर्टसन कॉलेज जबलपुर से की. ज्वाला प्रसाद ने नागपुर विश्वविद्यालय से रसायन शास्त्र में पढ़ाई की थी. इसके बाद 1932-33 में उन्होंने अंग्रेजी शासन काल में दमोह कलेक्टर के अधीन अपर कलेक्टर रहे. 8 माह में उनका नौकरी से मोहभंग हो गया और उन्होंने नौकरी छोड़ दी.
मायानगरी में आजमाया भाग्य
ज्वाला प्रसाद मुंबई चले गए और सिविल कोर्ट में मुंशी गिरी करने लगे. इसके साथ ही वे बुलियन मार्केट से जुड़ गए. जहां उन्होंने बुलियन मार्केट में सांकेतिक भाषा का आविष्कार किया. उस समय बुलियन मार्केट लंदन से संचालित होती थी. यहां पर वे मुंशी से मार्केट के एक सफल खिलाड़ी बने. इसके बाद उन्हें बुलियन एक्सचेंज का अध्यक्ष चुना गया. वे लगातार 7 साल तक बुलियन एक्सचेंज के अध्यक्ष के पद पर बने रहे.
हबीब बैंक के संस्थापक बने
पंडित तिवारी के भांजे एवं रिटायर्ड बैंक कर्मी सतीश पांडे बताते हैं, “बुलियन मार्केट में सांकेतिक भाषा को उन्होंने इजाद किया था, जो आज भी बुलियन मार्केट में चल रही है. संकेतों के आधार पर यह बताया जाता है कि सोना या चांदी कितना खरीदना है, कब बेचना है, कितने दाम पर बेचना है. इसके अलावा उन्होंने उस समय के विश्व प्रसिद्ध हबीब बैंक की स्थापना भी कराई थी. भारत-पाकिस्तान के विभाजन तक वह उसके संस्थापक रहे. देश के विभाजन के बाद हबीब बैंक पाकिस्तान चला गया. “
9 हिट फिल्में बनाईं
बुलियन मार्केट के अध्यक्ष रहने के दौरान पंडित तिवारी को बॉलीवुड में फिल्म बनाने का जुनून सवार हुआ. उन्होंने माखनलाल तिवारी के नाम से एमएडटी फिल्म स्टूडियो शुरू किया. यह स्टूडियो को वर्तमान में बॉम्बे स्टूडियो के नाम से जाना जाता है. उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा स्टूडियो था. उन्होंने अपने जीवन काल में 9 फिल्मों का निर्माण भी किया. जिसमें नजरिया, निराला, नादान, लाखों में एक, सिकंदर और चाणक्य (जो कि अपूर्ण है) जैसी सुपरहिट फिल्में दीं.
फिल्म इंडस्ट्रीज में हुई एक दिन की छुट्टी
इन फिल्मों में देवानंद जैसे उस समय के सुपरस्टार किरदार निभाते हुए नजर आए हैं. इसके बाद वह इंडियन मोशन पिक्चर्स संस्था के अध्यक्ष निर्वाचित हुए. इसके तुरंत बाद उन्हें वेस्टर्न फिल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया और जीवन पर्यंत वह उसके अध्यक्ष रहे. पंडित तिवारी के पिता रामभरोसे तिवारी का जब मार्च 1967 में निधन हुआ तो एक दिन के लिए पूरी फिल्म इंडस्ट्रीज बंद रही थी. ऐसा भारत के इतिहास में पहली बार हुआ था.
खेती में किया नवाचार
इन सब के बीच ज्वाला प्रसाद का माया नगरी से मोह भंग हुआ और वह एक बार फिर दमोह लौट आए. यहां आने के बाद उन्होंने अपने ढिगसर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर परासिया हार नाम से एक कृषि केंद्र की स्थापना की. उस समय राष्ट्रीय बीज मिशन के अध्यक्ष शाहनवाज थे. उन्होंने उनसे संपर्क कर खेती में नवाचार शुरू किया. 70 के दशक में जब देश भुखमरी की ओर बढ़ रहा था.
उस समय तिवारी ने विभिन्न प्रकार की आधुनिक मशीन, ट्रैक्टर और कृषि यंत्रों की मदद से गेहूं, सोयाबीन तथा जानवरों के लिए बरसीम लगाने की शुरुआत की. इन सबके लिए बीज निगम से एक एग्रीमेंट भी हुआ था की बीज निगम की देखरेख में फसलें लगाई जाएंगी और उस फसल को निगम वापस खरीदेगा. लेकिन निगम ने पूरे बीज को रिजेक्ट कर दिया. इसके लिए भी तिवारी ने कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी.

