
दमोह लोकसभा सीट का इतिहास बेहद दिलचस्प है। यहां चुनाव जीतने से पहले या बाद में सांसद दल बदलते रहे हैं। यह सिलसिला 35 वर्षों से जारी है। इस बार भी भाजपा के प्रत्याशी राहुल लोधी पहले कांग्रेस से विधायक रहे हैं।
दमोह लोकसभा संसदीय क्षेत्र का एक अनोखा इतिहास रहा है। यहां दल बदलने वाले नेता ही 35 वर्षों से लोकसभा का चुनाव जीत रहे हैं। इस अवधि में सिर्फ 2009 के निर्वाचित भाजपा सांसद को छोड़ दिया जाए तो जितने भी सांसद बने, उन्होंने चुनाव से पहले या बाद में दल बदलने का काम अवश्य ही किया है। यह क्रम उस समय से प्रारंभ है जब दमोह-पन्ना संसदीय क्षेत्र हुआ करता था। आज यह दमोह-रहली संसदीय क्षेत्र बन गया है।
पूर्व में दमोह-पन्ना संसदीय क्षेत्र में जिले की चार विधानसभा के अलावा छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा और पन्ना की तीन विधानसभा सीटें शामिल रहती थी। नए परिसीमन के बाद दमोह संसदीय क्षेत्र में दमोह जिले की चारों, छतरपुर जिले की बड़ा मलहरा और सागर जिले की देवरी, रहली और बंडा विधानसभा सीटों को शामिल कर दमोह-रहली संसदीय क्षेत्र बनाया गया है।
राजा लोकेंद्र सिंह से शुरू हुआ सिलसिला
जब दमोह-पन्ना संसदीय क्षेत्र हुआ करता था, तब 1989 में पन्ना राजा लोकेंद्र सिंह ने भाजपा के टिकट पर कांग्रेस के डालचंद जैन को हराया था। इसके बाद जब उन्हें दूसरी बार टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस में चले गए। फिर पन्ना से कांग्रेस के विधायक बने। रामकृष्ण कुसमरिया ने 1991 में डालचंद जैन, 1996 में मुकेश नायक, 1998 में नरेश जैन और वर्ष 1999 में तिलक सिंह लोधी को हराया। लगातार चार बार सांसद बने। 2004 में उन्हें खजुराहो संसदीय सीट से दिल्ली जाने का मौका मिला। 2013 में कुसमरिया पथरिया विधानसभा से विधायक बने और मध्य प्रदेश में बतौर मंत्री कृषि विभाग संभाला। 2018 में उन्हें टिकट नहीं दिया तो बागी हो गए। दमोह और पथरिया सीटों से निर्दलीय चुनाव लड़ा और दोनों पर हारे। 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी तो उसमें चले गए। एक साल बाद घर वापसी हो गई
पैसे लेकर क्रॉस वोटिंग के आरोप
2004 में भाजपा के टिकट चंद्रभान सिह ने कांग्रेस के तिलक सिंह लोधी को हराया था। लोकसभा में परमाणु संधि पर आए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान सदन से अनुपस्थित रहे थे। उन पर क्रॉस वोट का आरोप लगा और भाजपा ने पार्टी से निकाल दिया था। तब चंद्रभान सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी बने और हार गए। विधानसभा चुनाव भी लड़ा लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए। तब एक बार फिर वापस भाजपा में लौट गए। 2014 और 2019 के चुनावों में जीते प्रहलाद पटेल भी भाजपा एक बार छोड़ चुके हैं। वह 2005 में उमा भारती के साथ उनकी भारतीय जनशक्ति पार्टी में चले गए थे। जब नई पार्टी को चुनावी सफलता नहीं मिली तो भाजपा में लौट आए थे। इस समय नरसिंहपुर से विधायक हैं और राज्य शासन में मंत्री भी हैं। 2009 में शिवराज लोधी सांसद बने थे, जिन्होंने दल-बदल नहीं किया। अन्यथा वर्ष 1989 से लगातार जो भी सांसद बना, उसने चुनाव लड़ने से पहले या बाद में दल जरूर बदला है। इन 35 वर्षों में शिवराज लोधी को छोड़कर कोई भी सांसद ऐसा नहीं रहा, जो सिर्फ एक पार्टी से जुड़ा रहा हो।
वर्तमान में भाजपा प्रत्याशी ने भी किया दलबदल
लोकसभा चुनाव में दमोह संसदीय क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर राहुल सिंह लोधी चुनाव मैदान में हैं। वर्ष 2018 में दमोह विधानसभा से कांग्रेस विधायक बने थे। उसके बाद विधायक एवं पार्टी से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल हो गए थे। उपचुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद वर्तमान में भाजपा ने इन्हें लोकसभा में अपना प्रत्याशी बनाया है। उनके सामने कांग्रेस के तरवर सिंह लोधी है, जो एक जमाने में राहुल सिंह के मित्र हुआ करते थे। दोनों अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से साथ में ही विधानसभा पहुंचे थे।