
सागर लोकसभा सीट पर भाजपा के पास अपनी जीत की लीड बरक़रार रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के पास भाजपा के तिलिस्म को तोड़ यहां फतह हासिल करने की।
मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड अंचल की प्रमुख लोकसभा सीट सागर में स्वतंत्रता के बाद शुरुआती दशकों में जनता लगातार कांग्रेस पर विश्वास जताती रही। वर्ष 1952 से 1984 तक अपवाद छोड़ कर लगातार कांग्रेस को जीत मिलती रही, लेकिन वर्ष 1991 के बाद आज तक यह सीट भाजपा का मजबूत गढ़ बन चुकी है। लगातार सात बार से भाजपा का दबदबा बना हुआ है।
मंदसौर सामान्य सीट होने के बाद ओबीसी के प्रत्याशी को विजय मिलती रही है जिसके चलते ओबीसी के भूपेंद्र सिंह, लक्ष्मीनारायण यादव, राजबहादुर सिंह लोकसभा का चुनाव जीते। इस दफा भाजपा ने मौजूदा सांसद राजबहादुर सिंह के स्थान पर महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष डॉ. लता वानखेड़े को उम्मीदवार बनाया है। जो ओबीसी वर्ग से ही आती हैं। अगर पिछले परिणामों की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2019 में भाजपा ने सागर से जीत हासिल की थी। भाजपा ने 6 लाख 46 हजार 231 मत हासिल किए थे और कांग्रेस प्रत्याशी प्रभुसिंह ठाकुर को 3 लाख 40 हजार 689 मत मिले। इस तरह कांग्रेस के प्रभु सिंह ठाकुर 3 लाख 5 हजार 542 मतों से चुनाव हार गए।
चुनावी मुद्दे
सागर संसदीय सीट की बात करें, तो कृषि प्रधान इस इलाके में सिंचाई सुविधाओं के अभाव के चलते किसान को मजदूरी कर अपनी रोजी रोटी कमानी होती है। ऐसे में बुंदेलखंड के दूसरे जिलों की तरह सागर का बड़ा तबका बडे़ शहरों की तरफ पलायन करता है। औद्योगिकीकरण के नजरिए से देखा जाए तो मध्यप्रदेश की इकलौती रिफायनरी बीना रिफायनरी सागर संसदीय सीट में स्थित है, लेकिन रोजगार के मामले में यहां के लोगों को कोई खास अवसर हासिल नहीं हुए हैं। अंचल में रोजगार के अन्य संसाधनों का अभाव है, जिससे यहां पढ़े-लिखे नौजवानों की संख्या ज्यादा है। हालांकि संभागीय मुख्यालय सागर में केंद्रीय और राजकीय विश्वविद्यालय के साथ मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज भी है। स्वास्थ्य सुविधाओं की अगर बात करें तो कहने को यहां शासकीय मेडिकल कॉलेज है, लेकिन आज भी सुपर स्पेशियल्टी सुविधाओं का अभाव यहां के मरीजों को नागपुर और भोपाल के चक्कर लगाने को मजबूर करता है
मुख्य मुकाबला
सागर संसदीय सीट पर मुख्य मुकाबला हमेशा की तरह इस बार भाजपा तथा कांग्रेस के बीच माना जा रहा है। कहने को तो यहां बहुजन समाज पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी उतारा है। सागर लोकसभा सीट से भाजपा ने अपना प्रत्याशी मध्य प्रदेश राज्य महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष लता वानखेडे़ को बनाया है। लता वानखेड़े कुर्मी समुदाय से आती हैं जो पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आता है अगर समग्र ओबीसी वोट बैंक एकजुट होता है तो उनकी राह आसान बनेगी। बीजेपी प्रत्यशी के पक्ष में भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेताओं ने ताबड़तोड़ सभाएं कीं। वही कांग्रेस ने यहां से चंद्रभूषण बुंदेला को मैदान में उतारा है। चंद्रभूषण सिंह बुंदेला 6 माह पहले विधानसभा चुनाव के समय बहुजन समाज पार्टी का दामन छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे। वे उत्तरप्रदेश के ललितपुर के डोंगरा कलां निवासी बुंदेला बंधु नाम से चर्चित सुजानसिंह बुंदेला परिवार के सदस्य हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के पहले बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे, जिन्हें कांग्रेस ने स्टार प्रचारक बनाया था। बतौर स्टार प्रचारक हेलीकॉप्टर से जमकर प्रचार किया। कांग्रेस के किसी भी बड़े नेता की सभा का आयोजन नहीं हुआ।
सागर लोकसभा एक परिचय
सागर लोकसभा सीट की जनसंख्या 23 लाख 13 हजार 901 है, जिसमें से 72 प्रतिशत लोग गांवों में और 27 प्रतिशत लोग शहरों में निवास करते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मुख्य रूप से कृषि एवं मजदूरी करते हैं, लेकिन शहर में बड़ी संख्या में लोग बीड़ी और अगरबत्ती बनाने का काम भी करते हैं। सागर लोकसभा क्षेत्र में सागर जिले की बीना, खुरई, सागर, सुर्खी, नरयावली पांच विधानसभा सीटें आती हैं। जबकि परिसीमन के बाद इसमें विदिशा जिले की सिरोंज, शमसाबाद, कुरवाई सीटों को जोड़ा गया था। इन आठ विधानसभा सीटों में से सात पर भाजपा काबिज थी, जबकि बीना विधानसभा सीट पर कांग्रेस की निर्मला सप्रे विधायक थीं। जिन्होंने मतदान तीन दिन पहले भाजपा का दामन थाम लिया था।
लोकसभा सीट का इतिहास
साल 1951 में ये सीट अस्तित्व में आई थी, तब यहां कांग्रेस का कब्जा था। तब यह सीट आरक्षित वर्ग के लिए रिजर्व थी। 1967 के चुनाव में यहां से भारतीय जन संघ ने जीत दर्ज की तो वहीं 1971 में यहां से कांग्रेस जीती, लेकिन 77 के चुनाव में उसे भारतीय लोकदल से शिकस्त हासिल हुई। साल 1980 के चुनाव में कांग्रेस की यहां वापसी हुई और 1984 में भी उसका राज यहां रहा, लेकिन 1989 के चुनाव में यहां भाजपा ने जीत के साथ खाता खोला और शंकर लाल खटीक यहां से सांसद बने। साल 1991 के चुनाव में एक बार फिर से यहां कांग्रेस को सफलता मिली, लेकिन साल 1996 के चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से अपनी हार का बदला ले लिया और वीरेंद्र कुमार खटीक यहां से सांसद चुने गए। वो लगातार चार बार इस सीट से एमपी रहे। साल 2009 के चुनाव में यहां से भाजपा नेता भूपेंद्र सिंह और साल 2014 के चुनाव में भाजपा के ही टिकट पर लक्ष्मी नारायण सिंह यहां के सांसद की कुर्सी पर विराजमान हुए। वहीं 2019 में बीजेपी के राजबहादुर सिंह निर्वाचित हुए एक तरह से ये सीट बीजेपी की पारंपरिक सीट बन गई। सागर लोकसभा के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पिछड़ा वर्ग चुनावों मैं निर्णायक भूमिका अदा करता है। इसके आलावा हरिजन ठाकुर और जैन, ब्राह्मण, मुस्लिम, वोट भी अच्छी खासी संख्या मैं है।
संसदीय सीट पर वर्ष 2019 मैं कुल 65.57% मतदान हुआ था। यहां कुल 10 लाख 37 हजार 175 वोट पड़े थे। इनमें भारतीय जनता पार्टी को 6,46,231 मत जबकि कांग्रेस को 3,40,689 मत मिले थे। यहां से भारतीय जनता पार्टी प्रत्याशी राजबहादुर सिंह ने कांग्रेस प्रत्याशी प्रभु सिंह को 3 लाख से अधिक मतों से पराजित किया था। अगर 2024 के मतदान की बात की जाए तो यहां इस बार मतदान का प्रतिशत 65.75% रहा है। इसमें पुरुष मतदान 70% जबकि महिला मतदान 61% रहा है। यहां भाजपा के पास अपनी जीत की लीड बरक़रार रखने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के पास भाजपा के तिलिस्म को तोड़ यहां फतह हासिल करने की।