
रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व में अब गिद्धों के संरक्षण की योजना पर काम शुरू किया गया है। बुंदेलखंड अंचल की आबोहवा गिद्धों को भाती है और यहां प्राकृतिक रहवास के तौर पर विकसित करने की संभावनाओं के चलते यह योजना बनाई गई है।
सागर, दमोह तथा नरसिंहपुर जिलों में फैले मध्य प्रदेश के सबसे नए वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व (नौरादेही) को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिले साल भर भी नहीं हुआ है लेकिन अब यहां बाघों के साथ-साथ अन्य जंतुओं के संरक्षण का काम शुरू किया जा रहा है। अब यहां भारतीय गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष योजना पर काम शुरू किया जा रहा है।
भोपाल के वन विहार पार्क में कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिए गिद्धों की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। दरअसल, भारतीय गिद्ध एक तरह से विलुप्ति की कगार पर है। पिछले दिनों हुई प्रदेशव्यापी गिद्ध गणना के परिणामों से उत्साहित वन विभाग कैप्टिव ब्रीडिंग के जरिये गिद्धों के संरक्षण के लिए विशेष कार्य योजना पर काम कर रहा है। इस योजना के तहत वन विहार से तीन जोड़े अवयस्क गिद्धों को नौरादेही टाइगर रिजर्व मैं मोजूद गिद्धों के प्राकृतिक रहवास मैं रखने की योजना है। कुछ समय रखने के बाद इन गिद्धों को खुले वातावरण में छोड़ा जाएगा।
प्राकृतिक सफाईकर्मी
प्राकृतिक सफाईकर्मी माने जाने वाले गिद्ध विलुप्ति की कगार पर है। गिद्धों की कमी का कारण यह रहा है कि किसानों ने मवेशियों का इलाज करने के लिए डाइक्लोफेनाक नामक दवा का उपयोग शुरू कर दिया था। इस दवा से मवेशी और मनुष्यों, दोनों के लिए कोई खतरा नहीं था। जो पक्षी डाइक्लोफेनाक से उपचारित मरे हुए जानवरों को खाते थे, उनके गुर्दे खराब होने लगे और कुछ ही हफ्तों में उनकी मृत्यु होने लगी। गिद्धों की संख्या में कमी होने के कारण मृत पशुओं को जंगली कुत्तों और चूहों ने खाना शुरू कर दिया। ये गिद्धों की तरह पशुओं के शव को पूरी तरह खत्म करने में सक्षम नहीं हैं। गिद्धों का समूह एक जानवर के शव को लगभग 40 मिनट में साफ कर सकता है। सरकार ने मवेशियों के उपयोग आने वाली कई दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिए था। साथ ही गिद्धों के संरक्षण के प्रयास भी तेज कर दिए जाने से अब गिद्ध फिर से नजर आने लगे हैं।
दो बार प्रदेशव्यापी गणना
भारतीय गिद्ध को बचाने के लिए मध्य प्रदेश वन विभाग ने दो बार प्रदेशव्यापी गणना का फैसला लिया है। इससे यह पता चल सके कि प्रवासी गिद्धों के अलावा कितनी प्रजातियों के गिद्ध मध्य प्रदेश के जंगलों में वंश वृद्धि कर रहे हैं। गिद्धों की शीतकालीन गणना फरवरी माह में 16, 17 और 18 फरवरी को की गई। ग्रीष्मकालीन गणना 29, 30 अप्रैल और एक मई को की गई थी। मध्य प्रदेश में हिमालयन गिद्ध आते हैं। इनके जाने के बाद गणना करने पर ही पता चलता है कि यहां रहने वाले गिद्ध कितने हैं। गणना में पिछले सालों की तुलना में गिद्धों की संख्या में बढ़ोतरी दर्ज हुई है।
ऐसे बढ़ेगी गिद्धों की संख्या
महारानी दुर्गावती अभ्यारण्य के डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर एए अंसारी ने बताया कि इन गिद्धों की संख्या कैप्टिव ब्रीडिंग की सहायता से बढ़ाई जाएगी। कैप्टिव ब्रीडिंग को ‘संरक्षित प्रजनन’ के नाम से भी जाना जाता है। लुप्तप्राय पौधों और जानवरों को नियंत्रित वातावरण में रखकर प्रजनन की प्रक्रिया को कैप्टिव ब्रीडिंग कहा जाता है। जानवरों और पौधों को प्राकृतिक आवास से बाहर चिड़ियाघरों, वनस्पति उद्यानों या सुरक्षित स्थानों पर सभी अन्य सुविधाओं में रखा जाता है। इसके लिए जानवर या वनस्पति का चयन कर उन्हें प्रजनन के उद्देश्य से नियंत्रित किया जाता है, ताकि उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके। फिलहाल यह प्रक्रिया भोपाल के वन विहार नेशनल पार्क में शुरू कर दी गई है। यहां जन्म लेने वाले इंडियन वल्चर के अवयस्क बच्चे ऐसे स्थान पर भेजे जाएंगे, जो गिद्धों के संरक्षण में अहम भूमिका निभा सकते हैं। जहां पूर्व मैं इनके प्राकृतिक आवास रह चुके हैं।
नौरादेही में चुने गए स्थान
वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर डॉ एए अंसारी ने कहा कि नौरादेही टाइगर रिजर्व में कुछ स्थान हैं, जहां गिद्धों का काफी अच्छा रहवास क्षेत्र है। उनमें एक जगह नरसिंहपुर जिले की डोंगरगांव रेंज में गिद्धकोंच है। वहां देशी गिद्ध (इंडियन वल्चर) के अच्छे घोंसले हैं। यह एक अच्छा रहवास स्थल है। हाल ही में वन विहार नेशनल पार्क में केप्टिव ब्रीडिंग प्रोग्राम शुरू किया गया है। वहां पर जो गिद्ध के बच्चे हुए हैं, उन्हें हम गिद्धकोंच में बसाएंगे। वहां हमने स्थल चयन और तैयारी कर ली है। हमें इंडियन तीन जोडे़ अवयस्क मिलेंगे। इन्हें हम एवियरी (पक्षीशाला) में रखेंगे। कुछ दिन तक इन्हें यही खाना उपलब्ध कराया जाएगा। जब वह खुद ही खाने की व्यवस्था करने और खाने लायक हो जाएंगे, तब उन्हें प्राकृतिक वातावरण में छोड़ दिया जाएगा।