
आचार्य समयसागरजी महाराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव में 27 अक्टूबर 1958 को हुआ था। वे ही आचार्य विद्यासागरजी महाराज के पहले शिष्य भी हैं। बता दें कि समय सागरजी महाराज आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन के भाई भी हैं।
दमोह जिले के प्रसिद्ध जैन तीर्थ क्षेत्र कुंडलपुर में आचार्य विद्यासागरजी महाराज के उत्तराधिकारी के रूप में मुनिश्री समयसागरजी महाराज ने आचार्य पद ग्रहण कर लिया है। 16 अप्रैल को इस नजारे को देखने पूरे देश से लाखों लोग कुंडलपुर पहुंचे थे। आचार्य पद ग्रहण करने के बाद अब मुनि संघ आचार्यश्री के बताए मार्ग पर ही आगे बढ़ेगा। जिस तरह से समाधिस्थ आचार्य की आज्ञा लेकर ही पूरा संघ एक धारा में बहता था उसी तरह अब नए आचार्य समयसागर महाराज की आज्ञा लेकर ही मुनि संघ चलेंगे। महावीर जयंती तक पूरे मुनि संघ के कुंडलपुर में ही रुकने की उम्मीद जताई जा रही है।
बता दें 18 फरवरी 2024 को जैन संत आचार्य विद्यासागरजी महाराज ने समाधि ली थी। खराब सेहत के कारण 6 फरवरी को ही विद्यासागर जी ने समयसागर जी को उत्तराधिकारी बनाकर खुद आचार्य पद का त्याग कर दिया था। इसके बाद 16 अप्रैल को कुंडलपुर में आचार्य पद पदारोहण का कार्यक्रम तय हुआ था।
यह है नए आचार्य का जीवन परिचय
आचार्य समयसागरजी महाराज का जन्म कर्नाटक के बेलगांव में 27 अक्टूबर 1958 को हुआ था। वे ही आचार्य विद्यासागरजी महाराज के पहले शिष्य भी हैं। बता दें कि समय सागरजी महाराज आचार्यश्री विद्यासागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन के भाई भी हैं। समयसागरजी महाराज ने केवल 17 साल की उम्र में ही जैन धर्म की दीक्षा ले ली थी।
बचपन से धर्म-कर्म में रही रुचि
बताया जाता है कि बचपन से ही आचार्यश्री की रुचिधर्म और कर्म में ही रही। बचपन में माता-पिता ने इनका नाम शांतिनाथ जैन रखा था। जैन धर्म की दीक्षा लेने पर इनका नाम श्री समयसागर महाराज हो गया। छह भाई-बहनों में समयसागरजी महाराज सबसे छोटे रहे। आचार्य समयसागरजी महाराज पहले शांतिनाथ जैन के नाम से जाने जाते थे। उनके पिता का नाम मल्लप्पाजी जैन है। वहीं, मां का नाम श्रीमंतिजी जैन है। आचार्य समयसागरजी महाराज छह भाई-बहनों में छठे नंबर पर थे और अभी वे 65 साल के हैं
1975 में लिया ब्रह्मचर्य व्रत
समयसागरजी महाराज ने 2 मई 1975 को ब्रह्मचर्य व्रत ले लिया था। इसी साल उन्होंने दिसंबर महीने में मध्य प्रदेश के दतिया सोनागिरी क्षेत्र में क्षुल्लक दीक्षा ले ली। क्षुल्लक यानी छोटी दीक्षा। ये जैन समाज में संतों की श्रेणी में पहली है। उन्होंने ऐलक दीक्षा 31 अक्टूबर 1978 को ली। क्षुल्लक दीक्षा के 5 साल बाद समयसागरजी ने 8 मार्च 1980 को मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के सिद्धक्षेत्र द्रोणगिरी में मुनि दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा गुरु उनके गृहस्थ जीवन के बड़े भाई आचार्य विद्यासागर ही थे। समयसागरजी ही विद्यासागरजी के पहले शिष्य बने। यहीं से उनका मुनि जीवन शुरू हुआ और तपस्या के कठोर नियमों को उन्होंने अपने जीवन में अपना लिया।
मुनियों-दीक्षार्थियों के हैं शिक्षक
आचार्य समयसागरजी महाराज ने संघ के मुनियों और समाज को जैन पंथ, ग्रंथ और विचारधारा को जगाने की जिम्मेदारी ली। वे नए मुनियों, दीक्षार्थियों के शिक्षक बने। जैन पंथ और ग्रंथों के अध्ययन के मामले में उन्हें सर्वश्रेष्ठ गुरुओं में गिना जाता है। नियमित रूप से मुनियों को पढ़ाते हैं। स्वयं भी नियमित अध्ययन करते हैं।
इस तरह से हैं आचार्यश्री की चर्याएं
आगम के अनुसार चलते हैं। बोलते समय कुछ अपनी तरफ से नहीं जोड़ते, जिनवाणी पर श्रद्धान, जनवाणी पर नहीं। आहार में नमक, शक्कर, फलों का त्याग। दिन में एक ही बार खाते हैं। सोने के लिए केवल लकड़ी के तखत का उपयोग करते हैं।

